आलेख
मिजोरम के पर्यटन स्थल
– वीरेन्द्र परमार
मिजोरम एक छोटा पर्वतीय प्रदेश है। मिजो का शाब्दिक अर्थ पर्वतवासी है। यह शब्द- मि और जो के संयोग से बना है। मि का अर्थ है लोग तथा जो का अर्थ है पर्वत। मिजोरम उत्तर–पूर्वी भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसके पश्चिम में बांग्लादेश और त्रिपुरा तथा पूरब एवं दक्षिण में म्यांमार है। इसके उत्तर में मणिपुर और असम का कछार जिला स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस प्रदेश का विशिष्ट महत्व है क्योंकि लगभग 650 मील की अंतर्राष्ट्रीय सीमा म्यांमार एवं बांग्लादेश को स्पर्श करती है। इस क्षेत्र को पहले लुशाई हिल्स के नाम से जानते थे। बाद में लुशाई हिल्स का नाम परिवर्तित कर इसे मिजो हिल्स नाम दिया गया। 21 जनवरी 1972 को इसे केन्द्रशासित प्रदेश घोषित किया गया। 20 फरवरी 1987 को मिजोरम को भारत का 24 वां राज्य बनाया गया। इसका कुल क्षेत्रफल 21,087 वर्गकिलोमीटर तथा 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 10,91,014 है, जिनमें पुरुष 5,52,339 एवं महिला 5,38,675 हैं I जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्गकिलोमीटर 52 है। लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 975 है। मिजोरम की साक्षरता 91.58 प्रतिशत है I मिजोरम की राजधानी आइजोल है, जो सिलचर से 180 किमी दूर है। राज्य के अन्य प्रमुख शहर हैं चम्फई, लुंगलेई, कोलासिब, सरछिप आदि। मिजोरम में राल्तेर, पाइते, बाइते, चकमा, हमार, लुसेई, पंग, रियांग, हुलंगो, मघ, पवी, थदाऊ इत्यादि समुदाय के लोग रहते हैं। चकमा, मघ और रियांग समुदाय की जीवन शैली मिजोरम के अन्य समुदायों से थोड़ी भिन्न है। सभी जनजातियों के पास अपनी भाषा है लेकिन कोई लिपि नहीं है। मिशनरी के प्रभाव से सभी भाषाओं के लिए रोमन लिपि का प्रयोग होता है। ये भाषाएँ तिब्बती-चीनी परिवार की भाषाएँ हैं। कुछ समुदायों के लोग तो पूर्णतः अपनी मातृभाषा भूल चुके हैं और वे दुहलियन बोली बोलते हैं। लुसेई समुदाय की भाषा दुहलियन मिजोरम की संपर्क भाषा बन चुकी है। पर्यटन के मानचित्र पर अभी तक मिजोरम पूरी तरह उभर नहीं पाया है लेकिन यदि यहाँ के पर्यटन स्थलों को विकसित किया जाए और आवागमन के साधनों का विस्तार किया जाए तो यह राज्य की आर्थिकी का प्रमुख आधार साबित हो सकता है।
आईजोल- आईजोल मिजोरम का सबसे बड़ा शहर और राज्य की राजधानी है। हरे-भरे पहाड़ और घाटी इस शहर को खूबसूरत बनाते हैं। यहाँ समृद्ध मिजो संस्कृति के दर्शन होते हैं। यह पूर्वोत्तर भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। आईजोल एक खूबसूरत पहाड़ी शहर है, जो समुद्र तल से लगभग 1132 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। शहर के पश्चिम में तलवंग और पूर्व तथा दक्षिण में तुरीयल नदी प्रवाहित होती है। आईजोल का शाब्दिक अर्थ ‘जंगली इलायची का क्षेत्र’ है, जिसका नामकरण महान मिजो चीफ ललसवुंगा और थनरुमा के समय में किया गया। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में वर्तमान राजभवन के आसपास कई गाँवों को बसाया था। ब्रिटिश प्रशासन ने 1890 में एक सैन्य चौकी ‘फोर्ट एजल’ की स्थापना की थी, जिसके बाद यहाँ एक स्थायी बस्ती आबाद हुई और कालांतर में मिजोरम का मुख्यालय बन गया। राज्य की राजधानी होने के कारण आइजोल राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र हैI मिजोरम के अधिकांश लोग ईसाई हैं और पाश्चात्य जीवन शैली से अधिक प्रभावित हैं। वे आगंतुकों का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक आदर्श गंतव्य है। बड़ा बाजार आइजोल का मुख्य बाजार है। बड़ा बाजार में लोग अपने परंपरागत परिधानों में कृषि उत्पाद बेचते हैं, साथ ही चीन से आयातित सामान भी बेचते हैं। इसी इलाके में स्थित मिलेनियम सेंटर लोकप्रिय शॉपिंग मॉल है। मिजोरम राज्य संग्रहालय शहर के केंद्र में स्थित है। यह संग्रहालय मिजो परंपरा, संस्कृति और इतिहास के संबंध में अच्छी जानकारी देता है। आइजोल के उत्तरी भाग में स्थित डर्टलंग हिल्स शहर का नयनाभिराम दृश्य उपस्थित करता है। सोलोमन मंदिर भी एक दर्शनीय स्थल है I तमदिल झील, मिनी जूलोजिकल गार्डेन, चानमारी, पैखाई आदि दर्शनीय स्थल हैं। आइजोल में अपना एयरपोर्ट है जहाँ से कई विमानन कंपनियाँ अपने विमानों का परिचालन करती हैं। कोलकाता, इम्फाल जैसे देश के महत्वपूर्ण शहर आइजोल से हवाई मार्ग द्वारा जुड़े हुए हैं। मिजोरम में रोड नेटवर्क बेहतर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 54 आइजोल को सिलचर के रास्ते पूरे भारत से जोड़ता है। शिलांग (450 किमी) और गुवाहाटी (506 किमी) से इसकी कनेक्टिविटी अच्छी है। मिजोरम अभी तक रेलवे से नहीं जुड़ सका है। सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन सिलचर है। वहाँ से 6-8 घंटे की यात्रा कर आइजोल पहुंचा जा सकता है। सिलचर देश के अन्य हिस्सों से वायु मार्ग और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
तमदिल झील- आइजल से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तमदिल झील एक प्रमुख पर्यटन स्थल है I यह झील चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई है I यह मिजोरम की सबसे बड़ी झील है I यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल भी है I यहाँ प्रकृति के अनछुए सौन्दर्य का अवलोकन करना एक स्वर्गिक अनुभव है I यह एक मानव निर्मित झील है जो विशेष रूप से राज्य के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। “तमदिल” का मिजो भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है ‘सरसों की झील’ I इस झील का नीला पानी और शांत वातावरण मनुष्य को एक अद्भुत शांति का एहसास कराता है। सदाबहार जंगल और पहाड़ियों के बीच में स्थित यह अद्भुत झील मिजोरम की पहाड़ियों के शांत जंगल में एक प्रमुख पर्यटन केंद के रूप में उभर रहा है I यह स्थान विश्राम के लिए पसंदीदा है और प्रकृति की गोद में भीड़ से दूर होने का अवसर प्रदान करता है। एक पर्यटक गंतव्य होने के अलावा इलाके के मछुआरे के लिए भी यह झील बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन सिलचर है जो 158 किलोमीटर दूर है I सिलचर से बस अथवा टाटा सूमो से तमदिल जा सकते हैं I निकटतम हवाई अड्डा आइजल का लिंगुई हवाई अड्डा है जो गुवाहाटी और कोलकाता से जुदा हुआ है I
वनतांग फाल्स – यह मिजोरम का सबसे बड़ा और सबसे सुंदर झरना है I यह जलप्रपात थेनजोल कस्बे से पांच किलोमीटर तथा आईजोल से 137 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है I यहाँ 229 मीटर की ऊँचाई से जलप्रपात गिरता है जो मनोरम दृश्य उपस्थित करता है I
बकतवांग गाँव – विश्व के सबसे बड़े परिवार के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज संयुक्त परिवार के मुखिया पु ज़ियोना हैं जिसकी 38 पत्नियां, 89 बच्चे और बड़ी संख्या में पोते- नाती हैं I परिवार के कुल 162 सदस्य चार मंजिली इमारत में रहते हैं जिसे ‘छुहनथर रन’ कहा जाता है I यह गाँव आईजोल से 70 किलोमीटर दूर है। इस परिवार के पास झूम खेती, बाग- बगीचा, फर्नीचर बनाने की कार्यशाला, एल्यूमीनियम बर्तन के निर्माण का कारखाना आदि है I अपनी आत्मनिर्भरता, शिल्प कौशल, कड़ी मेहनत और उद्यमशीलता के कारण इस परिवार की विशिष्ट पहचान है।
मुरलेन राष्ट्रीय उद्यान- मिज़ोरम राज्य के चम्पाई जिले में स्थित मुरलीन राष्ट्रीय उद्यान एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है । यह पार्क आईजल से 245 किमी पूर्व में स्थित है और चिन हिल्स के निकट है। लेंगेंटेग वन्यजीव अभयारण्य के निकट स्थित इस पार्क को 1991 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया । पार्क का कुल क्षेत्रफल 100 वर्गकिमी है। यह पार्क छह गुफाओं से घिरा हुआ है । मुरलीन पार्क में दुर्लभ किस्म के पशु- पक्षी और पेड़- पौधे हैं, जैसे- हूम के पिजेंट, पहाड़ी मैना, मयूर, तीतर, सनबर्ड्स आदि I इस पार्क से होकर कई नदियां प्रवाहित होती हैं जिनसे विद्यमान वन्यजीवों को प्रचुर मात्रा में पानी मिलता है। इस पार्क में अनेक गुफा हैं I मुरलेन नेशनल पार्क मुरलेन गांव में स्थित है जो हनहलान के चीफ साइथुमा सेलो का गांव है।
चम्फई- चम्फई मिजोरम राज्य का सीमावर्ती शहर है। 1678 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शहर समतल भूमि पर बसा है और राज्य का सबसे बड़ा मैदानी क्षेत्र है I यहाँ से म्यांमार की पर्वत श्रृंखला के नयनाभिराम सौन्दर्य का अवलोकन किया जा सकता है I ऐसी मान्यता है कि मिजो के पूर्वज सदियों पहले यहाँ आकर बसे थे I यह सामरिक दृष्टि से भारत का एक महत्वपूर्ण शहर है I चम्फई को मिजोरम के चावल का कटोरा कहा जाता है I इसे प्राचीन अवशेषों और स्मारकों के लिए भी जाना जाता है जो देश के समृद्ध अतीत का साक्षी हैं। मुरलेन राष्ट्रीय पार्क, रिह डील झील, फवंगपुई पीक, लेंगतेंग वन्य जीव अभयारण्य, कौलकुल आदि चम्फई के दर्शनीय स्थल हैं I यह भारत और म्यांमार के बीच व्यापार के लिए प्रवेशद्वार है I यह सीमावर्ती जिला मिजो समुदाय द्वारा बसाए सबसे पुराने स्थलों में से एक है। माना जाता है कि 100 साल पहले चमफई पर मार समुदाय द्वारा कब्जा किया गया । उसके बाद राल्ते, सैलो और ल्यूसी समुदाय ने यहाँ अपना निवास बनाया । अपनी रंग- बिरंगी आदिवासी परंपराओं, ऑर्किड और खूबसूरत परिवेश के लिए प्रसिद्ध यह एक आकर्षक गंतव्य है I चमफई में कुंगवहरी पुक मुख्य आकर्षणों में से एक है। माना जाता है कि यह प्राचीन गुफा पाताल लोक का प्रवेश द्वार है जो एक पहाड़ी की तरफ खुलता है। निकटतम हवाई अड्डा आइजोल एयरपोर्ट है जो यहाँ से लगभग 72 किमी दूर है। 158 किमी की दूरी पर स्थित सिलचर रेलवे स्टेशन से चम्फई के लिए ट्रेन भी उपलब्ध है। चमफई तक पहुंचने के लिए टैक्सी सेवाओं के साथ सरकारी और निजी बसें भी उपलब्ध हैं।
लुंगलेई – लुंगलेई का शाब्दिक अर्थ ‘चट्टान का पुल’ है I लुंगलेई अपनी सुंदरता और प्राकृतिक वैभव के लिए प्रसिद्ध है। यह एक आदर्श पर्यटन गंतव्य है I अगर किसी को कुछ समय के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रमों से अवकाश लेना और प्रकृति की गोद में शांतिपूर्वक समय व्यतीत करना हो तो लुंगलेई से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता I यह शहर मिजोरम राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है और इसका नामकरण यहां के पत्थर के पुल के नाम पर किया गया है। मिज़ोरम की राजधानी आइजोल के बाद लुंगलेई राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। लुंगलेई उत्तर में आइजोल और ममित जिले से घिरा हुआ है I इसके दक्षिण में लवंगतिलाई जिला, पश्चिम में बांग्लादेश और पूर्व में म्यांमार स्थित है I इस जिले का कुल क्षेत्रफल 4536 वर्गकिलोमीटर है। आइजोल से 165 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लुंगलेई प्रकृति का अनुपम वरदान है। हरे भरे पहाड़ों, वनस्पतियों और जीव- जंतुओं की विविध प्रजातियों के कारण लुंगलेई एक विशिष्ट शहर के रूप में प्रतिष्ठित हो गया है I कभी लुंगलेई चटगांव के साथ व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था। 1947 में भारत विभाजन के पश्चात शहर का व्यापारिक महत्व कम हो गया I अभी तक इस शहर का अपेक्षित विकास नहीं हो सका है लेकिन लुंगलेई की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। लुंगलेई में अनेक कुटीर उद्योग हैं, जैसे फर्नीचर, कृषि उपकरण, हथकरघा और बांस तथा बेंत के फर्नीचर बनाना आदि I पर्यटकों पर लुंगलेई की प्राकृतिक सुंदरता जादुई प्रभाव छोडती है I यहाँ फूलों और पेड़- पौधों की विविधता को देखने को मिलती है। यह पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए एक प्रमुख पिकनिक स्थल है। लुंगलेई की संस्कृति और परंपरा दुनिया के विभिन्न हिस्सों से पर्यटकों को आकर्षित करती है I यह शहर वायुमार्ग एवं सड़कों द्वारा अच्छी तरह जुड़ा है I आइजोल के निकट लेंगपुई हवाई अड्डे से कोलकाता, गुवाहाटी और इम्फाल जैसे शहरों के लिए नियमित उड़ानें हैं I निकटतम रेलवे स्टेशन सिलचर है।
सरछिप – माट और ताईकम नदियों के बीच में स्थित सरछिप जिले की सीमा म्यांमार से मिलती है I इसलिए सामरिक दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण जिला है I राज्य का सर्वाधिक ऊंचा जल प्रपात और आठवाँ ऊंचा पहाड़ इसी जिले में है I यहाँ के वनों में कुछ दुर्लभ प्रजाति के जानवर, पक्षी, औषधीय पेड़- पौधे और पुष्प पाए जाते हैं I वनतवांग जलप्रपात, जोलुटी हतरेंगनी लंग, थेनजोल डियर पार्क आदि दर्शनीय स्थल हैं I यह जिला भारत में सबसे ऊंची शिक्षा दर के लिए मशहूर है I इस स्थान का भ्रमण पर्यटकों को अनोखा अनुभव से भर देता है I सरछिप आइजोल से 112 किमी दूर है। ‘सरछिप’ का नामकरण सरछिप गांव के पर्वत शिखर पर पाए जानेवाले खट्टे पेड़ के नाम पर किया गया है। ‘सर- छिप’ शब्द का अर्थ ‘पर्वत पर निम्बू’ है I यह छोटा सा शहर छोटे गांव जैसा अनुभव प्रदान करता है । इस क्षेत्र में कुछ लोकप्रिय गांव हैं, जैसे- नीहलो और बुआंगपुरी I इन गाँवों के भ्रमण से प्राकृतिक पर्यटन की अनुभूति होती है I
– वीरेन्द्र परमार