छन्द-संसार
माँ को समर्पित दोहे
नेह भरी पुचकार की, क़ीमत है अनमोल।
बिक जाती है माँ मगर, सुनकर तुतले बोल।।
क़दमों में जन्नत मिले, देता फिरे बयान।
माँ तेरे हर रूप को, पूजे सकल जहान।।
आँचल से पंखा करे, हरे सभी अवसाद।
किस्मत वालों को मिले, माँ का आशीर्वाद।।
पढ़कर तुम भी देख लो, हर माँ का इतिहास।
बेटा हुआ उदास तो, माँ भी हुई उदास।।
धूप लिए जब शहर की, पहुँचा अपने गाँव।
माँ के आँचल ने दिया, मुझको शीतल छाँव।।
क्यूँकर सोचूँ मै भला, अनहोनी की बात।
मेरे सर पर है अभी, मेरी माँ का हाथ।।
– सत्येन्द्र गोविन्द