ख़बरनामा
महिला साहित्यकार सम्मेलन एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
27-28 फरवरी, 2016: पूरे भारत वर्ष में एकमात्र ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान, जयपुर में है। इसकी स्थापना 1985 ई. में की गई थी। अकादमी द्वारा जयपुर में 27-28 फरवरी, 2016 को महिला साहित्यकार सम्मेलन एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन अकादमी के सभागार में किया गया। संगोष्ठी का केन्द्रीय विषय ‘हिन्दी का कृष्ण भक्ति काव्य और आधुनिकता की अवधारणा’ था।
कार्यक्रम की संयोजक कानोडि़या महाविद्यालय हिन्दी विभाग की सहायक आचार्य डाॅ. सीता शर्मा द्वारा हिन्दी (कवि छुट्टन रचित) ब्रजभाषा शारदे वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। डाॅ. सीता ने स्वागत वक्तव्य में सम्मेलन की रूपरेखा प्रस्तुत की और अपना सम्पूर्ण वक्तव्य ब्रजभाषा में देते हुए विषय चयन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला तथा ब्रजभाषा माधुर्य को इस छन्द के गायन द्वारा इंगित किया-
“जसोदा कूँ लोरी गायबौ पालनौ सिखायौ तैनें, गोपी ग्वाल बालन ठिठोलिबौ सिखायौ है।
राधा कूँ मान मनुहार अभिसार अरु, बाँसुरी कूँ मीठौ रस घोरिबौ सिखायौ है।
साहित्य कूँ रस रीति, शब्द-अर्थ अलंकार, ललित कलान द्वार खोलिबौ सिखायौ है।
धन्य ब्रज वाणी तेरी अकथ कहानी तैन, बांणी के विधाताऊ कूँ बोलिबौ सिखायौ है।”
तत्पश्चात् ब्रजभाषा सहित्यकार व अकादमी के पूर्व सचिव कवि विट्ठल पारीक ने ब्रज वन्दना का मधुर गायन किया। मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान सरकार में बांदीकुई क्षेत्र से भाजपा की विधायक अल्का सिंह थीं। विशिष्ट अतिथि हिन्दी भाषा उपनिदेशक शिक्षा संकुल, जयपुर की डाॅ. ममता शर्मा, अध्यक्ष, मंत्री अरूण चतुर्वेदी की पत्नी भाषा एवं पुस्तकालय विभाग शिक्षा संकुल की विशेषाधिकारी डाॅ. मृदुला चतुर्वेदी थी।
संगोष्ठी में कुल पांच सत्र तथा ब्रजभाषा काव्य गोष्ठी रखी गई। उद्घाटन सत्र के बीज वक्तव्य में हिन्दू काशी विश्वविद्यालय, बनारस (उ.प्र.) की प्रोफेसर विद्योत्तमा मिश्रा ने केन्द्रीय विषय पर प्रभावी मूल्यांकन प्रस्तुत किया। उन्होंने कृष्ण भक्ति में आधुनिकबोध पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिन्दी का कृष्ण काव्य, प्रजातांत्रिक व मानवीय मूल्यों से पुष्ट है। आधुनिक युग का प्रत्येक विमर्श उसमें सम्पूर्ण तत्वों के साथ मुखरित हुआ है।
सम्मेलन में भारतवर्ष के विभिन्न विश्वविद्यालयों से हिन्दी और ब्रजभाषा साहित्य की विदुषियों ने वक्ता के रूप में तथा शोधार्थियों ने पत्रवाचक के रूप में सहभागिता निभाई। सम्मेलन में जयपुर के कई गणमान्य साहित्यकार उपस्थित रहे। सम्मेलन में निःशुल्क पंजीकरण तथा आवास-भोजन सुविधा के लिए ब्रजभाषा अकादमी की सभी आगन्तुकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
संगोष्ठी के चार सत्रों में कुल सताईस पत्रवाचन हुए तथा विभिन्न सत्रों में कुल तेरह महिला विदुषियों ने संबंधित विषयों पर विचार व्यक्त किए। इनमें डाॅ. आद्या वाजपेयी तथा डाॅ. जया प्रियदर्शिनी शुक्ला (वनस्थली विश्वविद्यालय), डाॅ. नलिनी श्रीवास्तव (छत्तीसगढ़), डाॅ. सुनीति आचार्य (महाराष्ट्र), डाॅ. साधना प्रधान (राजस्थान), डाॅ. हर्षबाला शर्मा, डाॅ. मंजू रानी तथा डाॅ. विनीता (दिल्ली विश्वविद्यालय), डाॅ. शशि प्रभा (भरतपुर, राजस्थान), डाॅ. विमलेश शर्मा (एम.डी.एस. विश्वविद्यालय, अजमेर), डाॅ. रेखा गुप्ता व डाॅ. रेणु व्यास (राजस्थान विश्वविद्यालय) रहीं।
शोधार्थियों में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश, दिल्ली विश्वविद्यालय, वनस्थली विश्वविद्यालय, एम.डी.एस. विश्वविद्यालय अजमेर तथा राजस्थान विश्वविद्यालय ने प्रमुखता से भाग लिया।
’कृष्ण भक्ति काव्य और साम्प्रदायिक सद्भाव’ विषय पर कई मुस्लिम शोधार्थियों ने सराहनीय पत्र वाचन किए, यही आधुनिक बोध का प्रमाण है कि साहित्य और अध्यात्म, जाति-धर्म, लिंग-भेद और सम्प्रदाय से ऊपर है और यह सिद्ध करता है कि हम बुद्धिजीवी हैं।
28 फरवरी को हुई ब्रजभाषा काव्य गोष्ठी ने तो मानो राधे कृष्ण भक्ति और ब्रजभाषा माधुर्य की रसामृत निर्झरणी प्रवाहित कर दी। काव्य गोष्ठी का संचालन कवि भूपेन्द्र भरतपुरी ने किया। गोष्ठी का प्रभाव यह हुआ कि संस्कृत की आचार्य डाॅ. दीपा पाण्डे ने भी ब्रजभाषा में काव्य-पाठ किया।
समापन सत्र में ब्रज संस्कृति साकार हो उठी जब शोधार्थियों ने ब्रज होली के छन्दों का सस्वर वाचन किया तथा संयोजक डाॅ. सीता शर्मा ने ब्रज लांगुरिया लोकगीत ‘ऐसी मारी है बछेड़ा ने लात लांगुरिया चुनरिया के चारों पल्ले फट गए’ तथा ब्रज का प्रसिद्ध लोकगीत ‘सासुल पनियाँ कैसे जाऊँ रसीले दोनू नैंना’ गाया तो कभी भावात्मक उद्धव शतक के छन्दों का सस्ववर वाचन कर वातावरण को माधुर्यमय बना दिया।
सम्मेलन आयोजन में अकादमी की वर्तमान सचिव सोविला माथुर जी का सहयोग प्रशंसनीय रहा। सह संयोजक डाॅ. नवल किशोर दुबे एवं डाॅ. दीप्तिमा शुक्ला थीं। समिति सदस्यों में श्री ज्ञानमोहन शुक्ला, श्री अमर कुमार, श्री ब्रज किशोर, डाॅ. शालिनी चतुर्वेदी, डाॅ. रत्ना शर्मा तथा डाॅ. कनुप्रिया कुमावत थी।
दो दिवसीय संगोष्ठी का समग्र प्रतिवेदन डाॅ. नवलकिशोर दुबे ने प्रस्तुत किया। अंत में अकादमी के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत श्री मोहन लाल मधुकर, प्रो. सुरेन्द्र उपाध्याय तथा प्रथम अध्यक्ष रहे डाॅ. विष्णु चन्द्र पाठक को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।
प्रस्तुति-
डाॅ. सीता शर्मा ’शीताभ’
(संगोष्ठी संयोजक)
– डॉ. शीताभ शर्मा