रचना-समीक्षा
महिला समानता की वास्तविक स्थिति से अवगत कराती कहानी ‘परिस्थिति’: के. पी. अनमोल
बेहतर शिक्षा और बेहतर सुविधाओं के बूते हम आज एक ऐसे परिवेश तक पहुँच गये हैं, जहाँ से बेहतर जीवन की संभावनाएँ नज़र आतीं हैं। लोगों की सोच खुल रही है, जीने का नज़रिया बदल रहा है। हम हर क्षेत्र में, हर दृष्टिकोण से विकास की राह पर अग्रसर हैं। नारी शिक्षा और नारी स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर भी हम यह कह सकते हैं कि कुछ तो ‘पॉजिटिव’ हो ही रहा है।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती नज़र आती हैं। अच्छे अच्छे, बड़े बड़े पदों की कुर्सियाँ महिला अधिकारीयों को पाकर प्रसन्नता अनुभव कर रही हैं। लेकिन यह भी स्वीकार्य है कि इस क्षेत्र में अभी और ‘पॉजिटिविटी’ की दरकार है। इतना ही काफ़ी नहीं है।
नारी के उत्थान की जितनी बातें की जा रही हैं; धरातल पर वे सब सही हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं, ये आप भी बेहतर जानते हैं और हम भी। इन सब में अभी बहुत कुछ ऐसा है, जो केवल ‘हवाई’ है। कुछ यही बात चैन्नई की कवयित्री व कथाकार रोचिका शर्मा जी ने अपनी कहानी ‘परिस्थिति’ में उकेरने की कोशिश की है।
‘देखो भोपाल’ में प्रकाशित इस कहानी में वे हमारे समाज में अब तक मौजूद बहुत सी विकृतियों को एक साथ हमारे सामने लाती हैं। कहानी की ज़मीन बहुत बड़ी नहीं है लेकिन दायरा बहुत विस्तृत है। बहुत कम शब्दों में रचनाकार महज़ तीन पात्रों के साथ अपनी बात सीधे-सपाट तरीक़े से कह देती हैं। प्रस्तुत कहानी में माँ और बेटी के माध्यम से कहानीकार ने दो युगों की विचारधाराओं की टकराहट को उकेरने की कोशिश की है। जहाँ बेटी पढ़ी-लिखी और आधुनिक सोच वाली है, वहीँ माँ आधुनिक होते हुए भी एक हद तक अपनी सीमाओं में बंधी है। ‘विधवा अपशकुन’ जैसी सोच से माँ की आधुनिकता की सीमा तय करते हुए कहानीकार ने उसकी ख़ुद की बेटी के साथ इस तरह की विडंबना जोड़कर उसे अहसास दिलाया है कि वह कितनी ग़लत थी। महिला समानता के बीच केवल पुरुष ही नहीं स्वयं एक महिला भी कितनी बड़ी बाधा है इस बात को भी कहानी हमारे बीच पुरज़ोर ढंग से रखती है।
प्रस्तुत कहानी में एक विधवा पात्र द्वारा कही पंक्ति, “आज के ज़माने में बिना सहारे की जवान औरत को भी तो लोग ठीक दृष्टि से नहीं देखते हैं।” द्वारा हमारे उजले समाज की कलुषित मानसिकता को सामने रख हमें यह समझाती है कि अभी हमें बहुत लम्बी दूरी तय करनी है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी बहन-बेटी बिना किसी डर के घूम-फिर सके; अपनी ज़िंदगी जी सके, तो इसके लिए हमें अपने बेटों में संस्कार जगाने होंगे। उन्हें महिलाओं की इज़्ज़त करना सिखाना होगा। साथ ही अपनी बेटियों पर भी विश्वास जताना होगा।
कहानी ‘परिस्थिति’ के माध्यम से कहानीकार ने हमारे सामने हमारे ही बीच की स्थिति को सफ़लता के साथ रखा है और यह समझाने का प्रयास किया है कि महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए चाहे हम कितने ही नारे लगा लें लेकिन सुधार की पहल अपने आपसे ही करनी होगी। समय रहते अगर हम न समझे, तो समय हमें बा-ख़ूबी समझा देगा।
एक अच्छी सरोकार युक्त सफ़ल कहानी के लिए रचनाकार को बधाई और शुभकामनाएँ।
समीक्ष्य कहानी-
– के. पी. अनमोल