आलेख
महिला लेखिकाओं का उपन्यास साहित्य में योगदान: मुदस्सिर अहमद भट्ट
हिंदी कथा लेखन के क्षेत्र में श्री निवासदास द्वारा लिखित हिंदी का प्रथम उपन्यास ‘परिक्षा गुरु’ जिस समय प्रकाशित हुआ, उसी समय प्रियंवदा देवी का ‘लक्ष्मी’, गोपाल देवी का ‘लक्ष्मी बहू’, भगवान देवी का ‘सौन्दर्य कुमारी’ नामक उपन्यास प्रकाशित हुए। हिंदी लेखिकाओं के कथा-साहित्य को दो कालों में विभाजित किया जा सकता है- स्वतंत्रता पूर्व तथा स्व्तान्त्र्योतर। स्वतंत्रतापूर्व लेखिकाओं की संख्या पुरुष लेखकों की तुलना में निःसंदेह कम है परन्तु उन परिस्थितियों में नारी का साहित्य क्षेत्र में पदार्पण करना अपने आपमें एक उपलब्धि से कम न था।
आज़ादी की लड़ाई के समय जो स्वर साहित्य में उभरा, उसमें देशकालिक परिस्थितियाँ और देश प्रेम की अभिव्यक्ति स्पष्ट लक्षित होती थी। सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, सरोजिनी नायडू, उषादेवी मित्रा आदि लेखिकाओं ने अपने समय को अभिव्यक्ति दी और उनके सशक्त लेखन का योगदान हिंदी साहित्य को प्राप्त हुआ। हिंदी उपन्यास के विकास में भी अनेक महिला उपन्यासकारों के उद्देश्यपूर्ण सर्जन का योगदान रहा है। उषादेवी मिश्र द्वारा रचित उपन्यास ‘वचन का मोल’, ‘जीवन की मुस्कान’, ‘आवाज़’, ‘सोहिंनी’, ‘सम्मोहित’ उल्लेखनीय हैं। उषादेवी मिश्र के बाद महिला उपन्यासकार शिवानी का नाम आता है। इनके लिखे उपन्यास हैं- ‘कृष्णकली’, ‘चौदह फेरे’, ‘शमशान’, ‘चम्पा सुरंगम’ आदि। इनके उपन्यास ‘कृष्णकली’ में मध्यवर्ग की विषमताएं, ‘कैंजी’ उपन्यास प्रेम-कथा पर आधारित है तथा ‘चौदह फेरे’ में सामजिक बदलाव के परिवेश को देखा जा सकता है।
कृष्णा सोबती हिंदी की जानी-मानी लेखिका हैं। आपने उपन्यास और कहानियाँ दोनों में सफलता पाई है। ‘मित्रो मरजानी’, ‘सूरजमुखी’, ‘अँधेरे’ इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। कृष्णा सोबती आधुनिक युग के यथार्थ जीवन को प्रस्तुत करती हैं। इन्होंने अपनी विभिन्न रचनाओं में नारी के विभिन्न वास्तविक रूप और पुरुष के कटु रूप भी प्रस्तुत किए हैं। मृदुला गर्ग अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका हैं। ‘उनके हिस्से की धूप’, ‘वंशज’, ‘वे सोते दिन’ आदि इनके उपन्यास हैं। इसी प्रकार शशिप्रभा शास्त्री के उपन्यास हैं- ‘सीढियां’, ‘नाते’, ‘क्योंकि’, ‘मीनारे’ इत्यादि।
साठोत्तरी कहानीकारों में मेहरुन्निसा परवेज़ का विशिष्ट स्थान है। उपन्यास लेखन में भी आपने विशिष्ट ख्याति प्राप्त की है। ममता कालिया ने ‘नरक दर नरक’ उपन्यास में मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त नरक को अनेक स्तरों पर चित्रित किया है। इनका ‘बेघर’ उपन्यास आधुनिक जीवन की विडम्बनाओं को व्यक्त करता है। उषा प्रियम्वदा के उपन्यास ‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’, ‘रुकोगी नहीं राधिका’, ‘शेष यात्रा’ आदि। इन तीनों उपन्यासों का केंद्र आधुनिक शिक्षित नारी है। ‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’ में एक मध्यवर्गीय परिवार में आर्थिक संकटों से जूझने वाली तथा अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का दमन करने वाली एक कामकाजी महिला की कथा है। ‘रुकोगी नहीं राधिका’ में भी मानसिक उलझन में पीड़ित नारी अपनी स्वतंत्रता एवं अस्मिता की ख़ोज में भटकती दिखाई देती है। ‘शेष यात्रा’ में नारी की व्यथा के चित्रण के अतिरिक्त नारी लोलुप पुरषों पर भी व्यंग्य किया गया है। इसी प्रकार रजनी पनिकर के सभी उपन्यास नारी प्रधान हैं, जिनमें नारी की भावनाओं का मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है।
‘बात एक औरत की’ नामक उपन्यास अग्निहोत्री द्वारा रचा गया है। श्रीनगर कश्मीर में जन्मी चंद्रकांता आज की उभरती कथा-लेखिकाओं में एक हैं। इनके तीन प्रमुख उपन्यास हैं- ‘ऐलान गली जिंदा है’, ‘यहाँ वितस्ता बहती है’, ‘कथा सतीसर’। इन उपन्यासों में कश्मीर की सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया गया है। मनु भंडारी भी कथा साहित्य में विशेष स्थान रखती हैं। ‘आपका बंटी’, ‘स्वामी’, ‘महाभोज’ इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इसके अतिरिक्त अपने पति राजेन्द्र यादव के सहयोग से ‘एक इंच मुस्कान’ उपन्यास की रचना की।
समकालीन महिला लेखन नारी की अस्मिता व स्वंत्रता की खोज का लेखन है। आज की लेखिकाओं ने अपनी रचना द्वारा स्त्री की अस्मिता को एक विशिष्ट पहचान दी है। उन्होंनें साहित्य में सदियों की चुप्पी को तोड़ा है। स्त्री की नई सोच, नयी जीवन द्रष्टि और नये भाव-बोध उनके लेखन की पहचान है। महिला लेखन में सामाजिक प्रतिबद्धता तो झलकती है, लेकिन राजनैतिक विचारधारा का प्रभाव कम दिखता है।
अतः जहाँ महिला लेखिकाओं ने नारी जीवन की अनुभूतियों तथा विसंगतियों का चित्रण कर नारी जीवन का मार्ग सरल बनाने का प्रयास किया है, वहीं हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है।
– मुदस्सिर अहमद भट्ट