जयतु संस्कृतम्
***महामनसां जन्मजयन्तीमुपलक्ष्य****
न धन की न मान की
न मोक्ष की थी चाहना
इसलिए तो चित्त में
विराजते महामना।
निर्मितो विश्वविद्यालयो येन स:
राजते मलवीयोsद्य मन्मानसे।।
कामना राज्यगा नो सुखस्य प्रिया
स्वर्गप्राप्ते: पुनर्जन्मनो नो सखे।
दु:खपीडात्मकष्टादिभि: पीडिता-
नां जनानां साहाय्यं विधत्तं सदा।।
येन सर्वं स्वकीयं परित्यज्य वै
संस्कृती रक्षिता पालिता पोषिता
नम्यते पूज्यते ध्यायते स्मर्यते
राजते मालवीयस्सदा मानसे।।
भारतीयप्रतिष्ठा सदा वर्धिता
मानवत्वस्य सेवा मुदा संस्कृता।
सत्यशिक्षात्मनिष्ठायुता जायतां
सर्वदैतादृशी भावना चेष्टिता।।
सर्वपूज्य: प्रणम्य: प्रियेषु प्रिय:
राजते मालवीयो हि मन्मानसे।।
आत्मरक्तेन सम्पोषितस्सेवित:
रक्षितो वर्धितो विश्वविद्यालय:।
भ्रष्टतां याति नित्यं मया प्रोच्यते
रक्ष्यतां हे गुरो वर्तते वन्दनम्।।
यत्र संस्कारशिक्षा सदा दीयते
भ्रातृभावस्समस्तस्थले सार्यते
मानवत्वस्य पाठस्सदा पाठ्यते
देशभक्तिर्मुदा मानसे धार्यते।।
सर्वपूज्य: प्रणम्य: प्रियेषु प्रिय:
राजते मलवीय: प्रिये मानसे।।
नाधिकं वच्मि मे वर्तते वन्दनं
याहि नो चित्ततो मे कदापि प्रभो
हे गुरो जीवितस्त्वं सदा मे हृदि
स्थास्यतीति प्रतीतिर्मुदा जायते|
वन्द्यते स्तूयते चिन्त्यते श्लाघ्यते
राजते मलवीयोsद्य मन्मानसे।।
– डॉ. शशिकान्त शास्त्री