छन्द-संसार
मनहरण घनाक्षरी छन्द
उलझी हुई है ताल, उलझे हुए सवाल,
कृपा हे दयानिधान, आज मुझे तार दो।
माया मोह खींचे मुझे, चली मैं भी आँखे मींचे,
दृष्टि दोष हर भोले, मति को सुधार दो।
शुचिता हो मन मेरे, समता के भाव लिये,
गोद मैं बैठा के मुझे, पिता जैसा प्यार दो।
निश दिन तुझे जपूँ, छवि चित्त में है तेरी,
प्रभु मेरी झोली भरो, मोक्ष उपहार दो।
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दोगले मिले जो लोग, छिप-छिप घात करें,
करो न विचार फिर, आज अभी त्यागिये।
तेरे संग तेरे रहे, झोला भर निंदा करे,
राम-राम कह प्यारे, विदा इन्हें कीजिये।
सफल प्रयास होंगे, शुचि मित्र साथ होंगे,
उनको बना मिसाल, प्यार से संभालिये।
मुँह की मिठास जैसे, कानों में हो सुर घुले,
सच रहे विष जैसा, सुधा मान पीजिये।
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काँव-काँव रोज करें, खिड़की पे आके बोले,
करोना है फैला हुआ, अतिथि न लाइये।
दूर से करे प्रणाम, घर ही है चारों धाम,
शुद्ध घर का आहार, बाहर न खाइये।
जीत लेंगे ये भी युद्ध, हौसले जो होंगे साथ,
रामजी सहाय रहे, मेरे साथ गाइये।
भाप सुबह शाम लो, हाथ सदा साफ रहे,
गमछे से मुँह ढके ,रोग ये भगाइये।
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टप-टप टीन बजे, कानों में संगीत घुले,
नृत्य करे मेघ बूंदे ऋतु अलसाई है।
चित में हिलोर उठे, तरंगित देह हुई,
मणि-सी बूंदों से मिल, धरा मुस्कराई है।
भीगी-भीगी मन से मैं, भीगे सब संग मेरे,
हरी-हरी प्रकृति भी संग ही नहाई है।
पियाजी की चाह लिए, गौरी तके चौखट को,
देखो-देखो सोच-सोच, खुद शरमाई है।
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बदली में लुके छिपे, किरणों के रथ चढ़े,
कब तक ठहरेंगे, बाहर भी आइए।
बहुतेरे दिन बीते, सूना-सूना मन लगे,
छोड़िए जी आलस को, जग चमकाइए।
सावन शृंगार करे, आप प्राण वायु रहे,
सुनहली चीर ओढ़े, जरा मुसकाइए।
धरा संग दिनकर, नेह कुछ अनूप है,
सुख चैन आप बिन, कैसे अजी पाइए।
– नीलम तोलानी