कविताएँ
(उत्तराखंड के हल्द्वानी के रहने वाले फ़रीद अहमद फ़रीद की कविताएँ छोटी लेकिन वज़नदार होती हैं। बेबाकी का अंदाज़े-बयां रखने वाले फ़रीद ऐसे विषयों पर क़लम चलाते हैं, जिन विषयों पर अच्छे-अच्छों की बोलती बंद रहती है। ‘उर्दू काव्य’ में शोधरत फ़रीद की कविताओं में एक विशेष वर्ग की स्त्री की पीड़ा मुखर हो बोलती है। प्रस्तुत है उनकी कुछ लघु कविताएँ।)
सुनो!
कभी
गौर किया तुमने?
कि
बिस्तर की सिलवटों में
तोड़ते हैं दम
मेरे हुकूक!
जब
अदा करते हो
तुम
अपना हक़!
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वो
सहती है ज़ुल्म,
सुनती है ताने,
है पाबंदियों में गिरफ्तार
पर है खामोश!
क्यों?
क्यूँकि उजड़ जायगी दुनिया
महज़
‘तीन लफ़्ज़ों’ से
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कई बार महसूस की थी
ग़ैर औरत की बू
उसने
शौहर के जिस्म से
लेकिन
तंग ज़ेहनियत के सबब
उसे मानना होगा
मर्द और औरत के बीच
मुख्तलिफ है शरीयत
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यह शज़र
यह पत्थर
सब गवाह हैं उसके
जिसकी
चीखें
तब्दील हुईं थीं
सिसकियों में
और
अब बस वो
एक’ज़िंदा लाश’ है
– फ़रीद अहमद फ़रीद