बाल-वाटिका
बड़े मज़े का गाँव जी
सोनू-मोनू खेल रचाते,
बगिया की इक छाँव जी।
केला-अमरुद, सेव-संतरे,
लदे-भरे हर ठाँव जी।।
चहुँ ओर है मनभावन,
रंग-बिरंगे फूल जी।
नदी किनारे गैया चरती,
सुधबुध अपनी भूल जी।
आकर सुबह-शाम नित कौवा,
करता काँव -काँव जी।।
झर-झर, झर-झर झरनें झरते,
नदियाँ करती कल-कल जी।
हरे-भरे जहाँ पेड़ घनेरे,
खुशियाँ बाँटे हरपल जी।
ऐसा सुंदर दृश्य देखकर,
थम-थम जाते पाँव जी।।
भोले-भाले, सीधे-सादे,
अजब निराले लोग जी।
मीठे-मीठे फल चुन-चुनकर,
सदा लगाते भोग जी।
छोटी-छोटी इनकी बस्ती,
बड़े मज़े का गाँव जी।।
– डॉ. प्रमोद सोनवानी