बाल-वाटिका
बिना जल के जीवन नहीं
पर्वत पर जो रहता है,
नदियों में फिर बहता है।
सागर में थम जाता है,
जाड़े में जम जाता है।
गर्मी इसे उड़ाती है,
बादल नये बनाती है।
बरस के करते धरती तर,
कभी इधर तो कभी उधर।
गड्ढे और तालाब भरे हैं,
इससे ही सब पेड़ हरे हैं।
हाथी, घोड़ा, गाय को भाता,
सब जीवों की प्यास बुझाता।
कुल्ला करते रोज नहाते,
बिना इसके ना खाना खाते।
बैग उठा स्कूल में जाते,
बोतल में भर के ले जाते।
अब समझा मैं बात सही है,
जल के बिन जीवन भी नहीं है।
आपस में संवाद करेंगे,
अब न इसे बर्बाद करेंगे।।
– दुर्गेश्वर राय वीपू