ग़ज़ल-गाँव
बाल ग़ज़ल-
शाम घिरे तो आते मच्छर
कानों में कुछ गाते मच्छर
कितना ही हम ढँक लें खुद को
पर हमला कर जाते मच्छर
खुद तो दिन भर सोते रहते
रातों हमें जगाते मच्छर
अपना ही खा जाते थप्पड़
गाल काट उड़ जाते मच्छर
ठहरे पानी वाले घर में
लेकर डेंगू आते मच्छर
धूप-हवा हो, खूब सफ़ाई
वरना सुई लगाते मच्छर
दे जाते हैं जब मलेरिया
कड़वी दवा खिलाते मच्छर
बच्चों ‘सुमन’ सरीखों का भी
खून चूस मुटियाते मच्छर
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बाल ग़ज़ल-
फूले-फूले गाल टमाटर
बिकने आये लाल टमाटर
घुल मिलकर हर इक सब्जी से
करते खूब कमाल टमाटर
‘सूप’ ‘सॉस’ चटनी में बुनते
स्वादों का इक जाल टमाटर
तड़के में रच कर महकाते
ढाबे वाली दाल टमाटर
फल-सब्ज़ी के ठेलों बैठे
कर के ऊँचा भाल टमाटर
नन्हे-मुन्ने के लगते हैं
प्यारे-प्यारे गाल टमाटर
ढेरों मिनरल,कई विटामिन
कितने मालामाल टमाटर
बता रहे हैं गलियों-गलियों
महँगाई का हाल टमाटर
ख़ास स्वाद से हर सलाद को
करते बहुत निहाल टमाटर
पीत ‘सुमन’ पर आते बच्चो!
कितने सुंदर लाल टमाटर
– लक्ष्मी खन्ना सुमन