ग़ज़ल-गाँव
बाल ग़ज़ल-
बताओ न पापा ये क्या हो गया है
कि बचपन कहाँ गुमशुदा हो गया है
पढ़ाई पढ़ाई पढ़ाई पढ़ाई
हरिक पल मेरा बोझ-सा हो गया है
न गिल्ली, न डंडा, न छुप्पम-छुपाई
बचा वक़्त स्क्रीन का हो गया है
कहाँ खेत-नदियाँ, कहाँ बाग़-झरने
सभी कुछ यहाँ ख़ाब-सा हो गया है
न ही माँ की लोरी, न कोई कहानी
मज़ा नींद का बे-मज़ा हो गया है
सुना है कि अनमोल होता था बचपन
ये सुनकर जिया अनमना हो गया है
– के. पी. अनमोल