मुक्तक
बाल-मुक्तक
बॉंह तोता नकल की गहता है,
पीठ पर बोझ गधा सहता है।
कोकिला बोलती मधुर वाणी
नाच कर खुश मयूर रहता है।।
दीप का काम रौशनी देना,
फूल का काम ताजगी देना,
नीर का काम प्यास हरना है
वायु काम जिंदगी देना है।।
सियारों में मिले होशियारी,
लोमड़ी में भरी समझदारी।
बहुत उत्पात मचाते हैं बंदर
कि घोड़ों में रहे वफादारी।।
ठहाके मार के हॅंसो बच्चो,
सजा के स्वप्न नित जियो बच्चो।
मात देते रहो शत्रुओं को
बनाते मित्र तुम चलो बच्चो।।
सुबह की सैर स्वास्थ्यवर्धक हो,
सभी से बैर कष्टदायक हो।
करो हरदम हृदय में विश्लेषण
रुका-सा पैर बहुत घातक हो।।
पर्व गणतंत्र का खुशी लाए,
पर्व स्वाधीनता बहुत भाए।
मस्तियों की छटा बैसाखी में
एकता गीत लोहड़ी गाए।।
किसी के वास्ते उड़ान बनो,
किसी के वास्ते ढलान बनो।
बनो खुशबू किसी की खातिर तुम
किसी के वास्ते जहान बनो।।
काम कोई नहीं निरर्थक हों,
साथ तेरे नए समर्थक हों।
स्वप्न ऐसे सजाओ ऑंखों में
पॉंव पथ में बने प्रदर्शक हों।।
एक सद्भाव-सा रहे मन में,
काम का चाव-सा रहे मन में।
मैत्री का उगे बिरवा ऐसे
प्यार का भाव-सा रहे मन में।।
– डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल