बाल-वाटिका
बाल कहानी- सच्चा नायक
सुधीर का मन पढाई -लिखाई में नहीं लगता था। मौज-मस्ती, हल्ला-गुल्ला, धूम-धड़ाका करना उसको पसंद था। सुधीर कुछ फ़िल्मी कलाकारों की हू-ब-हू नक़ल करता था। स्कूल के दोस्त उसको ‘हीरो’ कहते तो उसका सीना गर्व से फ़ैल जाता, सर ऊँचा हो जाता। उसे ऐसा लगता था, मानो वह एक सचमुच ही हीरो है। हमेशा अदाएँ दिखाना, शेखी बघारना, दूसरों को नीचा दिखाना उसकी आदत बना गया। उसे घमण्ड हो गया कि जो कला उसके भीतर है वह किसी और में नहीं।
उसकी माँ पहले तो यह सब चुपचाप देखती रही। उनको उम्मीद थी कि समय के साथ बड़ा होने पर सुधीर को खुद एहसास हो जाएगा और वह सुधर जायेगा पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। सुधीर शेखचिल्ली जैसे खयाली पुलाव पकाने लगा। कहता एक दिन मेरे पीछे भागेगी दुनिया। मेरा बँगला होगा अमिताभ बच्चन की तरह, दस बारह गाड़ियाँ होंगी। यह सब सुनकर उसकी माँ उसको समझातीं, “यह क्या पागलपन है सुधीर! इन हरकतों से कुछ हासिल न होगा। बंद करो यह तमाशा, पढाई में मन लगाओ।” माँ की बातें सुनकर वह बोला- “माँ एक दिन मैं सचमुच का हीरो बनकर दिखाऊँगा। उस दिन आपको अपने बेटे पर गर्व होगा।” माँ ने उसकी ओर देखा पर कुछ न बोलीं।
अगले दिन स्कूल जाने के लिए बस्ता टाँगे सुधीर बस का इंतज़ार कर रहा था। उसने देखा कि कुछ लड़कों का झुण्ड एक लड़की का पीछा कर रहा था। वह लड़की परेशान थी। लोग आ-जा रहे थे पर किसी ने ध्यान दिया। अचानक एक लड़के ने लड़की के हाथ से पर्स छीन लिया और भाग गया। लड़की चिल्लाई, भीड़ इक्कठी देखकर बाकी लड़के भाग खड़े हुए। सहमी हुई लड़की कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी। कुछ देर बाद उसने देखा एक छोटा-सा लड़का सिपाही के साथ उस ओर आ रहा था। साथ में वह चोर लड़का भी था। करीब आने पर पुलिस ने उस लड़की से पूछा- “क्या यह पर्स तुम्हारा है?”
लड़की ने पर्स को देख ही कहा- “यह मेरा ही पर्स है।” लड़की ने उस छोटे बच्चे को देखा, चोटें लगीं थी, कपड़े भी फट गए थे। पुलिसवाले ने कहा- “इस लड़के की बदौलत ही हम इस शातिर चोर को पकड़ पाये हैं। इसके साथी भी अब बच नहीं पाएंगे। इस लड़के ने बहादुरी से उस चोर का पीछा किया पर यह उसको पकड़ नहीं पा रहा था, यह खुद ही सड़क पर गिर गया। पुलिस चौकी पास ही थी तो इसने चिल्लाना शुरू कर दिया और फिर उठकर चोर के पीछे भागने लगा। इसने उसकी गर्दन दबोच ली और पर्स छीन लिया। आवाज़ सुनकर हम पहुँचे तो इन दोनों में हाथापाई हो रही थी। बहुत बहादुर बच्चा है यह तो।”
सिपाही ने सुधीर से उसका नाम, घर का पता और स्कूल का नाम पूछ सुधीर के घर और उस लड़की के घर फ़ोन किया और सभी को थाने पहुँचने के लिए कहा। थाने में सब हाल-चाल जानकर सबने सुधीर को खूब सराहा। स्कूल में जब इस बात की जानकारी मिली तो प्राचार्य ने प्रार्थना के समय सुधीर को बुलाकर शाबाशी दी और उसे ज़िंदगी का सच्चा नायक बताया।
– कल्पना भट्ट