बाल कहानी- चुन्नू हाथ से छूटा
चुन्नू चूहा जंपिंग स्टिक हाथ में उठाए जा रहा था। तभी उसकी निगाहें शिकंजे पर पड़ी। उसमें ताजी मक्खन लगी रोटी लगी थी। जोर की भूख लग रही थी। वह शिकंजे की ओर बढ़ा।
“ताजी रोटी। वाव! मजा आ जाएगा।’’ सोचते हुए पास गया। तभी उस के दिमाग में विचार आया, ’’ताजी रोटी, वह भी मक्खन लगी। यहां क्यों रखी है? कहीं दाल में काला तो नहीं है?’’
तभी चुन्नू को याद आया, उसकी बहन मुनिया ऐसे ही शिकंजे में फंसकर मरी थी. तो क्या यह जाल उसी के लिए है. यह सोचते हुए उस ने स्टिक हाथ में पकड़ ली. रोटी निकालने के लिए उसे आगे बढ़ाया.
तभी किसी ने पुकारा,‘‘ चुन्नू ! मजे में तो हो ?’’
‘ ओह ! यह तो बिन्नी मौसी की आवाज है.’
‘‘ कहो मौसी ! क्या हाल है ?’’ चुन्नू ने पलटते हुए कहा.
‘‘ बस मजे में हूं,’’ बिन्नी ने अपनी मूंछों पर जीभ फेरते हुए कहा,‘‘ तुम मिल गए हो, अब तो मजे ही मजे हो जाएंगे.’’
चुन्नू समझ गया कि अब उस की बारी है. बिन्नी आज उस का शिकार कर के रहेगी. यह सोच कर वह घबरा गया. मगर, फिर सोचा कि घबराने से काम नहीं चलेगा. मरना तो है. फिर क्यों न बचाव के उपाय कर के मरा जाए. यह सोचते हुए चुन्नू ने बिन्नी बिल्ली को चकमा देने की कोषिष कीं.
‘‘ मौसी ! आप के हालचाल तो ठीक है ?’’
‘‘ क्यों ? मेरे हालचाल को क्या हुआ ?’’ बिन्नी झट से बोली.
‘‘ नहीं मौसी, मेरे हालचाल खराब है. इसलिए पूछ लिया कि आप के हालचाल ठीक है या नहीं ?’’
बिन्नी मौसी चुन्नू की चालाकी भांप गई. वह उसे चकमा देने वाला है. इसलिए वह उस के झांसे में आने वाली नहीं थी.
‘‘ मुझे तो आज अपनी भूख मिटानी है,’’ बिन्नी ने कहा और झपटा मार दिया.
चुन्नू मौसी के हाथ में था. उस की जान सूख रही थी. मौसी कभी भी उसे खा सकती थी. इसलिए वह घबरा गया.
‘‘ मौसी ! मेरी बात सुनो.’’ वह बड़ी मुश्किल से बोल पाया.
‘‘ कहो,’’ बिन्नी ने कहा. वह जानती थी कि चुन्नू अब कहीं नहीं जा सकता है.
‘‘ मरने से पहले मैं अपनी एक इच्छा पूरी करना चाहता हूं.’’
‘‘ कहो, क्या इच्छा है ?’’
‘‘ मैं वह मक्खन लगी रोटी खाना चाहता हूं,’’ चुन्नू कुछ सोचते हुए कहा. जैसा कि उसे पता था, वैसा ही हुआ.
बिन्नी मौसी ने कहा,‘‘ तू ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है. मैं तूझे रोटी खाने के लिए छोङू दूं और तू भाग जाए.’’ कहते हुए बिन्नी मौसी चुन्नू को ले कर आगे बढ़ी.
‘‘ मैं तेरी अंतिम इच्छा पूरी करूंगी,’’ कहते हुए बिन्नी मौसी शिकंजे के पास गई. चुन्नू समझ गया कि बिन्नी मौसी शिकंजे से रोटी निकाल कर उसे खिलाएगी.
उस का अंदाज सही निकला. बिन्नी मौसी शिकंजे के पास पहुंची. उस ने चुन्नू को जोर से पकड़ रखा था.
‘‘ पहले मक्खन की रोटी खाओ. फिर मैं तुम्हें खाऊंगी,’’ कहते हुए बिन्नी मौसी ने शिकंजे में लगी रोटी पकड़ कर खींच लीं.
‘ खटाक’ की जोरदार आवाज हुई. बिन्नी मौसी चींख पड़ी. उस का पंजा कट गया था. उस में से खून निकल रहा था.
यह सब इतना अचानक हुआ कि बिन्नी मौसी को कुछ मालूम नहीं पड़ा. वह चींखी. दूसरा हाथ अचानक पहले हाथ को छूड़ाने के लिए गया. शिकंजा पहले हाथ में फंसा हुआ था.
चुन्नू कब हाथ से छूट गया, बिन्नी को मालुम नहीं हुआ.
चुन्नू बिन्नी के हाथ से छूटते ही भाग लिया. फिर उस ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि बिन्नी मौसी का क्या हुआ ? उस के लिए तो, जान बची लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए, की कहावत चरितार्थ हुई थी.
– ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश