बाल-वाटिका
बाल कविता- सूरज चाचू
रोज सुबह जल्दी जग जाते,
आकर मम्मी को भी उठाते।
उन्हें भेजकर हमें जगाते,
सूरज चाचू फिर इतराते।
पूरब से तुम आते हो,
दक्षिण खाना खाते हो।
पश्चिम में सो जाते हो,
उत्तर क्यों नहीं जाते हो?
जाड़े में अच्छे लगते हो,
गर्मी में फिर क्यों जलते हो।
बादल से तुम जब मिलते,
छम छम छम करते चलते हो।
तुम्हें देखकर चिड़िया बोले,
न्यारी कलियां आंखें खोले।
पत्ते भी मस्ती में डोले,
भर दो सब खुशियों के झोले।
दुनिया के सरकार हो तुम,
ऊर्जा के अवतार हो तुम।
जीवन का आधार हो तुम,
ख़ुद ही इक संसार हो तुम।।
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बाल कविता- चंदा मामा
तुम्हें देखकर जान न पाता,
कुछ भी कहो पर मान न पाता।
रोज़ बदलते हो आकार,
इसीलिए पहचान न पाता।
कभी गोल हो बन जाते,
अँधियारे को दूर भगाते।
कभी अचानक गायब होकर,
रात को काला कर जाते।
हुई गई शाम अब आओ ना,
मुझको और सताओ ना!
बड़ी जोर से भूख लगी है,
दूध-भात दे जाओ ना!
टिम-टिम करते कितने तारे,
इतने सारे दोस्त तुम्हारे।
मेरे खिलौने ले जाओ पर,
बन जाओ ना दोस्त हमारे!
चंदा मामा घर पे आना,
साथ बैठ खाएंगे खाना।
जब मम्मी पापा सो जाएँ,
आसमान की सैर कराना।।
– दुर्गेश्वर राय वीपू