बाल-वाटिका
बाल कविता- बिल्ली का झूला
सावन में एक पेड़ पे,
बिल्ली ने भी झूला डाला।
लगा के उस पर गद्दी बढ़िया,
ऊँचा दिया उछाला।
बैठ के झूले में बिल्ली,
चूहों पर रौब जमाए।
बोली जब मैं ऊँची जाऊँ,
ताली खूब बजाएँ।
झूल रही थी, मज़े मज़े में,
गिरी पेड़ की डाली।
सारे चूहों ने फिर मिलकर,
खूब बचाई ताली।।
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बाल कविता- बन्दर की बारात
बन्दर की बारात चढ़ी, बन्दरिया शरमाए,
बोली मेरी ख़ातिर, तारों वाली चुनरी लाए।
पूरे जंगल में ढूँढी पर, चुनरी ना मिल पायी,
ये सब सुनकर बेचारे, बंदर की माँ घबरायी।
तोते ने फिर बंदर को, एक ऐसा दिया उपाय,
सुनकर उसकी बात सभी, बाराती मुस्काए।
तोते ने आवाज़ जो दी, तो सौ-सौ जुगनू आए,
चुनरी पर यूँ चिपक गए, ज्यूँ तारे चिपकाए।
झिलमिल झिलमिल देख चुनरिया, बंदरिया मुस्काई,
चुनरी सिर पे ओढ़ के फिर, दुल्हन की हुई विदाई।।
– असमा सुबहानी