बाल-वाटिका
बाल कविता- निराली तितली
देखो उड़ी निराली तितली,
लागे भोली-भाली तितली।
रंग-बिरंगे पंखों वाली,
पीली, नीली, काली तितली।
फूलों के कानों में जाकर,
जाने क्या बतियाती है।
मैं जो जाऊं बातें करने,
पास ना मेरे आती है।
मान भी जाओ, पास तो आओ,
और नहीं मुझको दौड़ाओ।
मिलकर साथ मनाएंगे,
होली और दिवाली तितली।।
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बाल कविता- रानी मछली
जब पानी हो बिल्कुल मौन,
तालाब में सोया कौन?
जैसे ही हम दाना डालें,
ऊपर आकर झट से खा ले।
कभी डूबे, कभी ऊपर आए,
तरह-तरह करतब दिखलाए।
मैं जो उतरू पानी में,
मेरे हाथ कभी ना आए।
जैसे ही मैं बाहर निकलूं,
उछल कूदकर मुझे चिढ़ाए।
लगती बड़ी सयानी मछली,
तभी तो जल की रानी मछली।।
– दुर्गेश्वर राय वीपू