बाल-वाटिका
बाल कविता- नई पहचान
नित्य सवेरे तुम जग जाना,
धरती माँ को शीश नवाना।
प्यारे बच्चों इस दुनिया में,
मिल-जुलकर पहचान बनाना।।
मात-पिता की सेवा करना,
बाधाओं से कभी न डरना।
पढ़-लिखकर जीवन में अपनें,
मिल-जुलकर पहचान बनाना।।
सच्चाई के पथ पर चलना,
भेद-भाव की बात न करना।
अपनी मंज़िल तक जाकर तुम,
मिल-जुलकर पहचान बनाना।।
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बाल कविता- देखो तो शाला जाकर
करके जल्दी से तैयारी,
शाला पढ़ने जायेंगे।
चित्र बनें हैं जहाँ मनोहर,
मन अपना बहलायेंगे।।
पुस्तक-कॉपी लेकर झटपट,
सीधे शाला जाना है।
ध्यान लगाकर सच्चे मन से,
सबक हमें तो पढ़ना है।।
कितना अच्छा मिलता भोजन,
देखो तो शाला जाकर।
खेल-कूद भी तरह-तरह के,
देखो तो शाला जाकर।।
– डॉ. प्रमोद सोनवानी