बाल-वाटिका
बाल कविता- जैसलमेर की सैर
रिक्शे वाले, रिक्शे वाले
ठहरो हम भी चलने वाले
हम बच्चों को करनी सैर
शहर घुमा दो जैसलमेर
अब ना भाई देर करो तुम
अब रिक्शे को गियर धरो तुम
हमें करा दो सैर-सपाटा
भीड़-भाड़ और खास-सन्नाटा
स्वर्ण दुर्ग, रेतीले धोरे
जहाँ आते परदेशी गोरे
दिखलाओ इतिहास निशानी
सागर मल गोपा सेनानी
पटवों, सालमसिंह की हवेली
बीते कल की छुपी पहेली
लोक-गीत, संगीत सुनहरा
दिखला दो, सुनवा दो सारा
जैसल की धरती है प्यारी
सैर करा दो आज हमारी
****************************
शिशु गीत- मेरी मैया
मैया दूध पिलाओ ना
भूख लगी है आओ ना
दूध पिलाकर, लोरी गाकर
वापिस मुझे सुलाओ ना
मैया तेरी गोदी मुझको
बहुत सुहानी भाती है
तेरी वाणी, तेरे हाथों
मेरी निंदिया आती है
मैया तेरी बातें, ममता
मेरे मन को हरती है
मेरा अम्बर, पंछी, बादल
तू ही मेरी धरती है
– मुकेश बोहरा अमन