बालगीत
बादल बोला रोते-रोते
बादल बोला रोते-रोते,
कहाँ से पानी लाऊँगा?
पानी लाते-लाते मैं तो,
ठंड से ही मर जाऊँगा!
मेरे पास नहीं है स्वेटर,
नहीं है कोई पाजामा।
कितनी बार कहा है मैंने,
पर लाए ना मेरे मामा।
अब के भी न लाये वे तो
मैं खुद ही ले आऊँगा।
बादल बोला रोते-रोते
कहाँ से पानी लाऊँगा?
मेरे मन में छिपी हैं कितनी,
दुःख की भारी-भारी बातें।
ठंड में मैंने ठिठुर-ठिठुर कर,
काटी हैं कितनी ही रातें।
तुम जानो या न जानो पर,
मैं ये तुम्हें बताऊंगा।
बादल बोला रोते-रोते
कहाँ से पानी लाऊँगा?
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बादल बोला गरज-गरज कर
बादल बोला गरज-गरज कर
मैं तो अब बारिश लाऊँगा।
बारिश करते-करते मैं तो
ठंडक खूब बढ़ाऊंगा।।
नदियों में कितना कम पानी
कब, कैसे नाव चलेगी?
नानी की राह देखते बच्चों
की आँसू में रात ढलेगी।
बारिश करके नदियों का
मैं पानी खूब बढ़ाऊंगा।
बादल बोला गरज-गरज कर
मैं तो अब बारिश लाऊँगा।।
खेती सूखी, नदिया सूखी,
सूख गए सब झरने नाले।
बिन पानी के है सब सूना,
पड़ गए सबको प्राण के लाल।
इतने दिन मैं रह गया घर
अब ना मैं रह पाऊँगा।
बादल बोला गरज-गरज कर
मैं तो अब बारिश लाऊँगा।।
देख रहे हैं मुझको कब से,
छोटे बच्चे प्यारे-प्यारे।
गिल्ली डंडा, लुक्का-छिपी
वो खेल-खेल के हारे।
अब मैं आया हूँ बारिश ले,
उनको खूब नहलाऊँगा।
बादल बोला गरज-गरज कर
मैं तो अब बारिश लाऊँगा।।
– डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई