प्रेम पर कुछ दोहे
करुणा बेटी प्रेम की, सत्य प्रेम का पूत।
हो जाते हैं प्रेम से, ईश्वर भी अनुभूत।।
बेटे से माँ ने कहा, कभी न जाना भूल।
रिश्तो के संसार का, प्रेम सदा ही मूल।।
प्रेम उपजता प्रेम से, यह है प्रेम प्रताप।
प्रेम बाँटने में भला, कृपण हुए क्यों आप।।
वृक्ष गुल्म पादप लता, जल थल नभ के जीव।
प्रेम भरे व्यवहार से, हर्षित होय अतीव।।
शीतल जल निष्फल हुआ, यह कैसी है प्यास।
नयनों से आँसू बहें, उष्ण हुई है श्वास।।
मोल भाव होता नहीं, यही प्रेम व्यापार।
जीते तो भी हार है, हारे तो भी हार।।
‘खैरा’ जा संसार की, चली आ रही रीति।
सूरदास हो जात हैं, जो करते हैं प्रीति।।
– प्रियदर्शी खैरा
Facebook Notice for EU!
You need to login to view and post FB Comments!