आलेख
प्रेमाभिव्यक्ति से परिपूर्ण ‘रोशनी दर रोशनी’ : मुदस्सिर अहमद भट्ट
हमारे सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हिंदी में गज़ल की अवधारणा किस प्रकार हुई? हिंदी के कई विद्वानों एवं ग़ज़लकारों की यह अवधारणा बनी हुई है कि हिंदी में ग़ज़ल की अवधारणा उर्दू ग़ज़ल के प्रभाव के कारण हुई है। कई शोधकर्ता भी इस बात का समर्थन करते हैं। लेकिन हिंदी में कुछ विद्वान ऐसे भी हैं, जो यह मानते है कि हिंदी में गज़ल की अवधारणा उर्दू के प्रभाव के कारण नहीं हुई बल्कि फारसी गज़ल के प्रभाव के कारण हुई। वैसे यह बात सत्य भी लगती है क्योंकि जब हम अमीर खुसरो से हिंदी ग़ज़ल का प्रारंभ मानते हैं, तब यह निःसंदेह कह सकते हैं कि हिंदी गज़ल की अवधारणा सीधे फ़ारसी से हुई है क्योंकि अमीर खुसरो फ़ारसी में ग़ज़ल लिखते थे। हिंदी साहित्य के आदिकाल को हम हिंदी ग़ज़ल साहित्य का प्रारंभिक काल कह सकते हैं क्योंकि इस काल में ही हिंदी ग़ज़ल के बीज बोने का ऐतिहासिक दायित्व आमिर खुसरो ने निभाया।
ग़ज़ल मूलतः अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘प्रेमिका से वार्तालाप’। फ़ारसी और फिर उर्दू में यह एक कविता विशेष है, जिसमें एक ही रदीफ़ और काफिए में 11 शेर होते है। हर शेर का विषय अलग होता है। पहला शेर ‘मतला’ कहलाता है, जिसके दोनों मिसरे सानुप्रास होते हैं और अंतिम शेर मक्ता होता है, जिसमें शायर अपना उपनाम लगता है। इस रूप में यह विधा प्रेमाभिव्यक्ति का माध्यम है। इसी प्रेमाभिव्यक्ति का सशक्त और मार्मिक चित्रण ‘रोशनी दर रोशनी’ ग़ज़ल संग्रह में मिलता है।
‘रोशनी दर रोशनी’ गीता ठाकुर ‘रोशनी’ का एक सशक्त गज़ल संग्रह है। आपका जन्म 11 अक्टूबर, 1952 को नई दिल्ली में हुआ। दिल्ली विश्विद्यालय से स्नातक करने के बाद उनकी शादी एक व्यापारी दीपक ठाकुर से हो गई। रोशनी जी का पहला काव्य संग्रह अप्रैल, 1994 में प्रकाशित हुआ। ‘रोशनी दर रोशनी’ उनकी दूसरी प्रकाशित रचना है। आप लिखती हैं, “मैंने जब लिखना शुरू किया तो मुझे हैरानी भी हुई और ख़ुशी भी कि मैं जो कहना चाहती हूँ वो शायरी में ढलता जा रहा है। घर के लोगों और दोस्तों के इसरार पर मैंने फिर से ग़ज़लों को किताबी सूरत में लाया। अब शायरी ही मेरे जज़्बात का आइनादार हो गई है।” उनका कहना है-
रात की गोद में ‘रोशनी’
दूर तक झिलमिलाती रही1
गीता ठाकुर ‘रोशनी’ जी की ग़ज़लें रदीफ़-काफिया की कसौटी पर सही उतरती हैं। रदीफ़-काफ़िया की गहरी सूझ-बूझ होने के कारण रोशनी जी की ग़ज़लें स्वाभाविक और प्रभावपूर्ण बन पड़ी हैं। जो गज़लकार रदीफ़-काफिया के प्रति जितना सतर्क होगा, उसकी गज़ल उतनी ही प्रभावशाली हो जाती है। रोशनी जी अपने प्रेमी के साक्षात्कार को यूँ बयान करती हैं-
अब तो हटा लो हुस्न के चेहरे से ये नकाब
कोई तरस के रह गया दीदार के लिए2
रोशनी जी को अपने महबूब का चेहरा चाँद जैसा लगता है, जिसका चित्रण वे कई स्थलों पर करती हैं-
घटाओं में महताब छुपा है ऐसे
तेरा चेहरा तेरी जुल्फों में जैसे3
एक अन्य स्थल पर-
हंसी चाँद पे छा रही है ग़ज़ब है
ये ज़ुल्फ़ें काली घटाएं तुम्हारी4
यद्यपि रोशनी जी की सभी ग़ज़लों में अपने प्रेमी के प्रति अपार स्नेह, त्याग, बलिदान ही दिखाई देता है परन्तु कहीं-कहीं पर निराशा, हताशा का भी चित्रण मिलता है-
हसीं जितने हो उतने ही संगदिल हो
किसी ने न देखी ज़फ़ाएँ तुम्हारी5
एक अन्य स्थल पर देखिए-
उजड़ गयी है प्यार की दुनिया तेरे बगैर ऐ हमदम
तेरी प्यारी सूरत को बस दिल में बसा रखा है6
रोशनी जी की ग़ज़लों का सीधा सम्बन्ध करुणा, दया, मानवता, त्याग, बलिदान इत्यादि से है। उनका विश्वास है कि जिस व्यक्ति का मन जितना कोमल और सरल होगा वह उतना ही परोपकारी होगा। परन्तु आज दुर्भाग्य से लोगों ने अपने हृदय में करुणा की जगह कठोरता बसा ली है। बाजारवाद की दौड़ में प्रत्येक व्यक्ति पैसे के पीछे पड़ गया है तथा उद्योगीकरण के दौर में व्यक्ति एक मशीन मात्र रह गया है। वह स्वयं को भूल गया है जिसका सुन्दर शब्दों में इस प्रकार चित्रण हुआ है-
हर आदमी जीने की अदा भूल गया है
शायद बनाके हमको खुदा भूल गया है
पैसे को खुदा मानते है ज़र के ये गुलाम
हर शख्स जैसे खौफे खुदा भूल गया है7
निष्कर्षतः ग़ज़लकारा आम आदमी की भलाई के पक्ष में है। अपने सुख की अपेक्षा वे दूसरों के सुख में अपना सुख मानती हैं। अपनी ग़ज़लों के शेरों के माध्यम से उन्होंने सामान्य जन की पीड़ा का भी चित्रण किया है। उनके शरों में रोमानियत झलकती है तथा प्रेमाभिव्यक्ति की भी सशक्त और सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।
संदर्भ सूची-
1. गीता ठाकुर ‘रोशनी’, ‘रोशनी दार रोशनी, पृष्ठ 33
2. वही, पृष्ठ 21
3. वही, पृष्ठ 23
4. वही, पृष्ठ 30
5. वही पृष्ठ 30
6. वही, पृष्ठ 38
7. वही, पृष्ठ 16
– मुदस्सिर अहमद भट्ट