देशावर
प्रातःकाल
प्रातःकाल,
एक नए दिन की शुरुआत!
सूरज की कोमल किरणों के संग,
चमकीले, मुस्कुराते सागर की
प्रेम भरी लहरों का नर्तन।
अलौकिक दिगन्त!
आनंद की अनुभूति,
खुशियों की बौछार!
दिलसे उठी
एक ईश्वरीय पुकार-
कितनी अद्भुत तेरी रचना!
अनंत अंतरिक्ष की छटा,
अप्रतिम सौन्दर्य,
आँखों में न समाय!
हे मानव,
यह प्रकृति तेरे लिए रची ईश्वर ने,
उसका जतन कर
उसको नमन कर
– अश्विन मॅकवान
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