पुस्तक-समीक्षा
उद्देश्यपूर्ण, शिक्षाप्रद, प्रेरणादायी, मार्गदर्शक बालकथाओं का सुवसित गुलदस्ता ‘गंगू की गरमी’- प्रो. शरद नारायण खरे
बालमन अति कोमल व जिज्ञासु होता है। इसलिये जहाँ श्रेष्ठ बालसाहित्य बाल मनोरंजन में सहायक होता है तो वहाँ दूसरी ओर वह बालमस्तिष्क के सकारात्मक विकास में भी गहन योगदान देता है। इसलिए सुरुचि सम्पन्न व सार्थक बाल कविताओं, प्रेरक कथाओं, महापुरूषों की जीवनियों (जैसे अमर चित्र कथाएं), कार्टून्स व गीतों की निःसंदेह बाल विकास में विशिष्ट भूमिका है। बालक का मन कोमल होने के कारण उसमें व्यापक रूप में संवेदनशीलता का वास होता है। इसलिए बाल साहित्य अति परिपक्वता व विवेक के साथ सृजित होना चाहिए। अन्यथा नाजुक बाल मन नकारात्मक रूप में दुष्प्रभावित हो सकता है। इसी प्रकार से यह भी अति आवश्यक है कि बाल जिज्ञासा को सद्राह/सद्मार्ग प्राप्त हो। यदि बाल साहित्य अपरिपक्वता, गंभीरता के अभाव व सतही तरीके से रचा गया तो उसके दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव भी अंकित हो सकते हैं।
पर मुझे ये उद्घोषित/उद्घाटित करने में किंचित भी संकोच नहीं है कि गोविन्द शर्मा जी वर्तमान दौर के एक ऐसे श्रेष्ठ बालसाहित्यकार हैं, जिनके चिंतन व सृजन में गहन व व्यापक बौद्धिकता, दूरदर्शिता, परिपक्वता व समकालीनता विद्यमान है। यही कारण है जो कि शर्मा का बालसाहित्य एक प्रखर आभा के साथ अद्वितीयता, अनुपमता व असाधारणता के साथ पृथक से ही चमकता, दमकता दृष्टिगोचर होता है।
बाल साहित्य की प्राय: हर विधा में सृजन करने वाले गोविन्द शर्मा जी व उनके सृजन की वर्तमान में संपूर्ण देश में मान्यता है। उन्होंने जो कुछ लिखा/रचा है, वह निश्चित रूप से गुणवता व स्तरीयता का प्रतिनिधित्व करता है।
समीक्ष्य कृति ‘गंगू की गरमी’ श्रेष्ठ 25 बाल कथाओं का एक ऐसा सुवसित गुलदस्ता है, जिसमें उद्देश्यपूर्ण, शिक्षाप्रद, प्रेरणादायी, मार्गदर्शक बालकथाओं का समावेश है। शीर्षक कथा ‘गंगू की गरमी’ शिक्षा/साक्षरता का प्रसार करती है, तो रिक्त समय के उपयोग का संदेश भी देती है। पशु-पक्षियों को आधार बना कर रचि कथाएं मनोरंजक, प्रवाहमयी, संप्रेषणयुक्त होने के साथ ही प्रेरणात्मक/शिक्षापूर्ण हैं। शीर्षक कथा निश्चित रूप से व्यापक रूप में सार्थक व स्तरीय है।
अन्य कहानियां भी रोचक, मनोरंजक, गतिशीलतापूर्ण व प्रभावी हैं। पेड़ बच गया, चिड़िया और सांप, गूंगा घोड़ा, शेर को सवा शेर, नया फैसला, गजराज सरजू, दादी के कौए, अमृता देवी ने बचाए वृक्ष अत्यन्त प्रभावित करती हैं। कोई कथा नैतिकता की शिक्षा देती है तो कोई मानवीय मूल्य की, कोई एकता के महत्व की बात करती है तो कोई सहयोग की भावना पर बल देती है। कोई सामाजिक भावना, राष्ट्र सेवा, ईमानदारी का पक्ष लेती है तो कोई पर्यावरण संरक्षण पर जोर देती है। हर कथा एक साथ/एक संदेश रखती है और बालक के मन, जिज्ञासा व भावनाओं को एक परिपक्वता प्रदान करने का कार्य संपादित करती है।
‘चिड़िया और सांप’ कथा में जहाँ होशियारी की महत्ता प्रदर्शित की गयी है तो वहीं दूसरी ओर उसमें मिलजुल कर रहने व अपनों का सहयोग करने की सार्थकता प्रदर्शित की गयी है। निःसंदेह प्रत्येक कथा गहनता, व्यापकता, उच्चता व प्रखरता लिए हुए है। यह यथार्थ है कि बच्चों में संस्कारों का रोपण बाल्यावस्था में ही होता है। शिवाजी, महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, विवेकानन्द आदि ने बाल्यकाल से ही जो संस्कार व शिक्षाएं प्राप्त की थीं, वे ही उनके चरित्र व व्यक्तित्व निर्माण का आधार सिद्ध हुई। इस दृष्टि से बाल साहित्य की जो भूमिका व महत्ता है, उस पर गोविन्द शर्मा जी की यह कृति पूर्ण खरी व चोखी उतरती है।
वर्तमान में संस्कारों का ह्रास हो रहा है, नैतिकता तिरोहित हो रही है, चरित्र व अनुशासन समाप्त होने की कगार पर है, ऐसे में ‘गंगू की गरमी’ की बालकथाएं एक आशा का संचार करती है। यह दृढ़ विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि ये बालकथाएं बच्चों के नैतिक विकास, चरित्र निर्माण व अनुशासन रोपण में अत्यन्त ही सहायक सिद्ध होंगी।
पर्यावरण का संरक्षण, मानवीय मूल्यों का संरक्षण, एकता-समानता की भावना का शंखनाद भी इन कथाओं में किया गया है। पेड़ बच गया, कथा का आदर्श ‘किसी का भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता’ एक सुखद संदेश देता है। ‘पेन्सिल और इरेजर’ कथा यह आदर्श मुखरित करती है कि ‘अपने को मिटा कर बनाए को सुधारने वाला वास्तविक अर्थां में महान होता है।’
मनुष्य मनुष्यता खो रहा है और पशु (हाथी) मानवीय गुण से परिपूर्ण है, यह संदेश भी गजराज सरजू से प्राप्त होता है। निश्चित रूप से कृति की कथाओं के तत्व, संदर्भ, प्रसंग व कथ्य विविध व व्यापक हैं, जो जीने का वास्तविक अर्थ भी अभिव्यक्त करते है और जीने का सार भी प्रस्तुत करते हैं। अमृता देवी का वन संरक्षण कार्य (जो वास्तविकता पर केन्द्रित है) नयी पीढ़ी को नवल ऊर्जा व नवल चेतना प्रदान करता है। जब तक रचनाएं समकालीनता का प्रतिनिधित्व न करती हों और उनमें सार/संदेश/आदर्श समाहित न हो, तब तक वे मात्र ‘ख्याली पुलाव’ (उथली) ही मानी जाएँगी, पर ‘गंगू की गरमी’ की बाल कथाएं न केवल सारपूर्ण हैं, बल्कि संदेशपूर्ण/प्रेरक भी हैं और आदर्श की विशिष्टता व उत्कृष्ठ भावना से परिपूर्ण भी हैं।
निश्चित रूप से आकर्षक मुखपृष्ठ वाली यह 134 पृष्ठीय बालकथा कृति स्तरीय व बहुउपयोगी होने के कारण सराहनीय है और इसका रचनाकार अभिनन्दन का पात्र है। मैं गोविन्द शर्मा जी को बधाई देते हुए उनकी अभिवंदना करता हूँ।
‘गंगू की गरमी’ सुखद, देती शीतल छांव।
गायेगी यह हर जगह, होये नगर या गांव।।
समीक्ष्य कृति- गंगू की गरमी (बालकथा संग्रह)
कृतिकार- गोविन्द शर्मा
मूल्य- 200 रुपये
प्रथम संस्करण- 2016
– शरद नारायण खरे