जयतु संस्कृतम्
पुस्तकपरिचयम्
गीतिम्भरा : नवगीतों का अनुपम संग्रह
प्रेम शंकर शर्मा की गणना उन कवियों में होती है जो निरन्तर मौन सहित्य साधना में अधिक रुचि रखते हैं और अवसर के अनुरुप रचना करने में माहिर हैं । उनकी रचनाएँ इतने उच्च स्तर की होती हैं कि बड़े से बड़ा स्थापित रचनाकार उनकी समता नहीं कर सकता । वे अपनी रचनाओं में प्रत्येक शब्द तौलकर रखते हैं। यह नवगीत संग्रह (गीतिम्भरा) उनकी इस प्रतिभा का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
प्रेम शंकर शर्मा का इससे पूर्व एक काव्य संग्रह ‘गीर्गीति:’ प्रकाशित हो चुका हैं जिनकी साहित्य जगत में बहुत चर्चा हुई है। प्रस्तुत नवगीत संग्रह (गीतिम्भरा) इसी कड़ी में उनकी दूसरी पुस्तक है।
इस पुस्तक में प्रेम शंकर शर्मा की कुल 61 कविताएं संग्रहित हैं। ‘गुरुवंदना’ से प्रारम्भ होकर ‘संस्कृतम्’ तक विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत अनेक सुन्दर और गेय गीतों या नवगीतों को प्रस्तुत किया गया है जिसमें प्रमुख हैं- गंगा धारा, रंगिणी, अम्बे, हृदय, वीणा वादिनी, हे! गणपति, भारत राष्ट्र, भारत देश, महंगाई, किसान आदि। प्रत्येक गीत अपने आप में विशिष्टता लिए हुए हैं।
संग्रह का नान्दीवाक् संस्कृत के स्वनाम धन्य कवि पद्मश्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र (पूर्व कुलपति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी) ने लिखा है । समीक्षा डॉ. इच्छाराम द्विवेदी ‘प्रणव, डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ, डॉ. निवास मिश्र, डॉ. आनन्द कुमार श्रीवास्तव, डॉ.राजेन्द्र त्रिपाठी ’रसराज’ ने लिखी है। यह काव्य संग्रह शर्मा जी ने अपने गुरुवर प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र को समर्पित किया है जो स्वयं एक सिद्धहस्त कवि,शायर, नाटककार कहानीकार आदि हैं।
संग्रह का कवर बहुत आकर्षक है छपाई और कागज भी अच्छी कोटि का है इस पुस्तक में कुल 144 पृष्ठ हैं । पुस्तक का मूल्य रुपया 250 है ।
इस गीत संग्रह का साहित्य प्रेमियों द्वारा उसी प्रकार स्वागत किया जाएगा जिस प्रकार उनके पूर्व काव्य संग्रह का किया गया था इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं है।
– डॉ. अरुण कुमार निषाद