मूल्यांकन
पिता पर केन्द्रित 365 दोहों का अनूठा संग्रह ‘पिता छाँव वट वृक्ष की’
– सोनिया वर्मा
सैकड़ो सालों की काव्य परम्परा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाला अगर कोई छन्द है तो निःसंदेह वह दोहा है। दोहे में 13, 11 मात्राओं की दो लयबद्ध समतुकांत पंक्तियों में अपनी बात कहीं जाती है, जिसे पढ़ते ही पाठक अद्भुत रस का अनुभव करता है और स्वतः उसके मुख से वाहह निकल पड़ती है। बहुत से विषयों पर दोहे लिखे जा चुके हैं और लिखे भी जाएंगे परन्तु किसी एक विषय पर दोहा लेखन विचारणीय है। यह कारनामा किया है रायपुर (छ.ग.) के राजेश जैन ‘राही’ जी ने। उन्होंने पिता पर प्रथम संस्करण में 201 और द्वितीय संस्करण में 365 दोहे लिखने का कीर्तिमान स्थापित किया।
पिता शब्द सुनते ही दिमाग में पिता की छवि बन जाती है। पिता का त्याग, समर्पण, प्यार, दुलार, डांट, मार, समझाना, प्रोत्साहित करना ,जीवन के हर मोड़ पर डटे रहना और न जाने कितनी बातें, यादें दिलो-दिमाग में हलचल करने लगती है। पिता का होना धूप में छाँव देता है वट वृक्ष की तरह। ऐसे ही अपने अनुभवों और प्यार को राजेश जैन ‘राही’ जी ने दोहों के रूप में ढालने का सफल प्रयास किया है और उसका नाम रखा ‘पिता छाँव वट वृक्ष की’।
‘पिता छाँव वट वृक्ष की’ एक दोहा संग्रह है। यह पिता पर केन्द्रित 365 दोहों का अनूठा संग्रह है। किसी एक विषय पर इतने दोहे लिखना आसान नहीं है। इस प्रकार के लेखन में दोहराव का संकट भी बना रहता है। राही जी भी इससे बच नहीं पाए हैं किंतु पिता का कोई पक्ष छूटा हो ऐसा भी दिखाई नहीं देता। एक खास बात यह है कि यह पिता पर आधारित प्रथम पुस्तक है, जिसे ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दर्ज किया गया है।
बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद हमारे राह की बाधाओं को कैसे दूर करता है, राही जी इसी अनुभव को दोहे कहते हैं कि-
नमन करूँ मैं तात को, हाथ जोड़कर आज।
जिनके आशीर्वाद से, बनते सारे काज।।
बाबूजी का आशीर्वाद ही राह की बाधाएं दूर कर कार्य पूर्णता में मदद करता है।
पिता द्वारा दिए संस्कार संतान की उपलब्धियों के रूप में फलित होते नजर आते हैं और इनकी सीख जीवन में हर राह पर किसी न किसी रूप में हमारी मदद करती है।
सपनों को मिलने लगा, मनचाहा विस्तार।
बाबूजी के पाठ का, गहरा था आधार।।
बच्चा हो या युवा, सभी चाहते हैं की पिता का मार्गदर्शन, सुझाव जीवन के हर मोड़ पर मिलता रहें। राही जी इन्हीं भावों के साथ निवेदन करते है कि-
पिता छाँव वट वृक्ष की, धूप न लगने पाय।
खाद डालकर प्यार की, रखना सदा बचाय।।
मैं माटी कच्ची नयी, बापू बने कुम्हार।
ज्ञान चाक में ढालकर, मुझको दिया सुधार।।
खाकर थप्पड़ गाल पर, होना नहीं अधीर।
बना रहे तुमको पिता, धीर वीर गंभीर।।
पिता की डाँट और मार हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों के लिए मजबूत करती हैं। एक पिता हर हाल में बच्चों का साथ देता है। जब कोई भी साथ हो, वह उचित मार्गदर्शक बन बच्चों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। राही जी कहते हैं कि-
हाथों में हरदम रहे, बाबू जी के हाथ।
छोड़ा सब ने साथ पर, बाबू जी थे साथ।।
बच्चों को देनी मुझे, अच्छी एक सलाह।
बापू पर आश्रित नहीं, खोजो अपनी राह।।
अच्छे सुन्दर से इस रिश्ते में खट्टी-मीठी के साथ कुछ कड़वी यादें भी रहती हैं। ये वास्तविकता है कि वर्तमान में बच्चे माँ-बाप को बोझ समझ, वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं या खुद सपत्नीक अलग रहने लगते, ऐसी घटनाएँ सभी ने देखी होंगी और देखी नहीं तो अखबार आदि के माध्यम से पढ़ी-सुनी ज़रूर होगी। राही जी के शब्दों मे देखें इसे-
रिश्तों पर भारी हुआ, पैसा पद अधिकार।
पुत्र चला परदेश को, पिता यहाँ बीमार।।
ध्यान रखा परिवार का, किया नहीं आराम।
बच्चों ने दागे मगर, बापू पे इल्जाम।।
सुलह सफाई हो गई, सुलझा आज विवाद।
आश्रम में रहने लगे, बाबू जी आजाद।।
तीखे-तीखे बोल हैं, बेटा है या तीर।।
घायल दिल माँ बाप का, लाइलाज है पीर।।
वृद्ध माता-पिता को छोड़ बच्चे पैसे कमाने विदेश चले जाते हैं, माता-पिता लाचार असहाय हो अंतिम श्वास तक बच्चों का इंतजार ही करते रहते हैं। बच्चों के बड़े होने के साथ ही उनकी इच्छाएँ, ख़्वाहिशें और ज़रूरतें बढ़ने लगती हैं। कभी उनकी पढ़ाई, शोक या स्टेटस मेंटेन करने का खर्च, इक पिता ये पूरा करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देता है पर बच्चें इतना करने पर भी उन्हें नादान कहने से भी नहीं चूकते।
बेटों के कारण बिका, खेत सहीत खलिहान।
नालायक फिर भी कहें, बापू हैं नादान।।
बापू ने बाँटी सदा, खुशियां औ’ मुस्कान।
बच्चों ने वापस किया, आँसू भरा जहान।।
बेटे की इच्छा बहुत, जाए पढ़े विदेश।
बापू ने गिरवी रखीं, चीजें सभी विशेष।।
इक पिता ख़ुद को असहाय महसूस करता है, जब वह पुत्र को सुधारने की कोशिश करते-करते हार जाता है।
लाख करी कोशिश मगर, बेटा बिगड़ा जाय।
नये दौर में हो गये, बाबूजी असहाय।।
मुखड़े की झुर्री कहे, देखा है संसार।
बच्चों के आगे मगर, बाबू जी लाचार।।
समाज में बेटियों और बेटों में हो रहे भेदभाव, लड़कियों की संख्या में कमी व दहेज जैसी समस्या के लिए दोहों में सुन्दर संदेश दिया है कवि ने-
बहू चाहिए आपको, बेटी रखो सहेज।
भ्रूण बचाना हो अगर, रोको तात दहेज।।
बहुओं को भी दे रहे, बेटी जैसा मान।
बाबूजी चाहें सदा, कुनबे का उत्थान।।
बापू को मालूम थे, बेटों के सब हाल।
चलो बुढ़ापा कट गया, बेटी करे निहाल।।
बेटे सारे दूर हैं, बाप किसे है याद।
बेटी का दिल मोम-सा, रोज़ करे संवाद।।
पिता के छोड़ जाने का दुख या उनके न रहने के अहसास मात्र से होने वाली तकलीफ को कवि के नज़रिये से इन दोहों में देखिए-
बाबूजी जाना नहीं, छोड़ बीच मझधार।
रौनक घर की आपसे, रूह आप परिवार।।
बाबूजी जब से गये, हुआ सभी को ज्ञान।।
फूलों से खुशबू गयी, घर भी हुआ मकान।।
राजेश जैन राही जी की हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इतनी बेशकीमती किताब पढ़ने का सुअवसर दिया। उल्लेखीत दोहों ने खु़द-ब-ख़ुद किताब के बारे में सबकुछ बोल दिया है। मैं राही जी को सार्थक सृजन व गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में किताब का नाम दर्ज होने की बधाई व ढेर सारी शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ।
समीक्ष्य पुस्तक- पिता छाँव वट वृक्ष की
विधा- दोहा
रचनाकार- राजेश जैन राही
प्रकाशक- पोएट्री बुक बाज़ार
संस्करण- द्वितीय
– सोनिया वर्मा