यात्रा-वृत्तान्त
पहाड़ों की रानी: कोडईकनाल
– डॉ. कविता विकास
यात्रा का आयाम सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ा है, जिसमे स्वतंत्रता, अनुशासन और आनंद तीनों शामिल हैं। यात्रा का आनंद ही मन और जीवन की दशा तय करता है इसलिए मुझे लगता है यात्रा की प्रेरणा भी उन्हीं को मिलती है, जिनमें परिश्रम और संघर्ष करने के साथ-साथ सृजनात्मकता का बोध होता है। पहाड़ सदा से मुझे आकर्षित करते रहे हैं।
अल्प समय में दक्षिण भारत के पहाड़ों की रानी कोडईकनाल जाने का कार्यक्रम बना तो मन बाग–बाग हो गया। नौ सदस्यों की पारिवारिक यात्रा थी यह, बेहद रोमांचक। चेन्नई से मदुरै और फिर कोडईकनाल। तमिलनाडू में एक ओर आस्था का केंद्र मदुरै है तो दूसरी ओर प्रकृति की स्वाभाविक छट बिखेरता कडाइकनाल। आस–पास के समुद्र तट भी लुभाते हैं। यह राज्य आध्यात्मिक–सांस्कृतिक केंद्र के साथ पारंपरिक मूल्यों को समेट कर रखने वाला एक गौरवशाली राज्य है।
मदुरै पहुँचते–पहुँचते शाम हो गयी, होटल पहुँच कर हमने फ्रेश होकर रात में ही मीनाक्षी मंदिर का दर्शन करने का निर्णय लिया। यह मंदिर नौ गलियों के बीच है और हर गली में अनेक दुकानें हैं, जो सुंदर मूर्तियाँ, कलाकृतियाँ, पूजा के सामान और मिठाइयाँ बेचते हैं। इस मंदिर के हर ओर भव्य गोपुरम हैं, जिन पर हिन्दू देवी–देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं। ऊपर से देखने पर पता चलता है कि यह मंदिर शहर के बीचो-बीच जहाँ पहुँचने के चार मार्ग चारों दिशाओं मेँ हैं। मीनाक्षी देवी यानि मछली की आँख जैसी पार्वती देवी की प्रतिमा मुख्य है पर शिव की भी नटराज के रूप मेँ मूर्ति है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि यहाँ शिव बाएँ पाँव ओर न होकर दाएँ पाँव पर नृत्य करते दिखते हैं। रात की रौनक इतनी आकर्षक थी कि लाइन मेँ खड़े रहने की कोई थकावट नहीं महसूस हुई।
दूसरे दिन हमें कोडईकनाल के लिए निकलना था। मिनी बस कैब मेँ यात्रा का आनंद ही कुछ और होता है। जहाँ मर्ज़ी रोक लो, पहाड़ी झरने और नयनाभिराम दृश्यों का आनंद लेते हुए, खाते–पीते चलते रहो। दक्षिण भारत का स्विट्ज़रलैंड कहलाने वाला यह तमिलनाडू का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। गौरतलब है ठंड भी इतनी ही पड़ती है कि एक स्वेटर से काम चल जाये। रात मेँ ठंड थोड़ी बढ़ जाती है। पहाड़ की हर सीढ़ी पर बसे होटलों–घरों मेँ जब बत्तियाँ जलतीं हैं तो लगता है जैसे तारे ज़मीन पर उतर गए हों। बोटिंग क्लब और बोटानिकल गार्डेन तो दर्शनीय स्थान हैं ही, पहाड़ों के बीच बनी प्राकृतिक झील, पिल्लर रॉक्स, पेरुमल पीक और हर्बल पीक भी देखने लायक हैं। हर्बल पहाड़ जड़ी–बूटियों के पेड़ के लिए जाने जाते हैं, जिसमे अलग–अलग रंगों की पत्तियाँ मन को मोह लेतीं हैं। कुछ ऐसे फूलों की प्रजातियाँ भी देखने को मिलीं, जो केवल यहाँ के ठंड मेँ ही होती हैं। ड्राइवर–गाइड व्यू–पॉइंट को देखने का पर्याप्त समय देते हैं। सिल्वर वैली ऐसा ही एक पॉइंट था, जिसमें कटी–खड़ी ढालों के बीच इतनी गहराई थी कि पहाड़ों मेँ भी बैरीयर बनाकर छेक दिया गया है। इस गहराई मेँ जब बादल फंस जाते हैं तो जल्दी निकल नहीं पाते और देर तक पूरी घाटी मेँ कुहासा छाया रहता है। पहाड़ों पर बादलों का उतरना और झट बरस कर छूट जाना आम बात है, इसलिए अपने साथ टूरिस्ट छतरी भी रखते हैं। सभी दर्शनीय स्थानों के पास गरम भुट्टे और मूँगफली के दानों की खूब बिक्री होती है। यात्राएँ केवल मनोरंजन ही नहीं करतीं, सामूहिकता में जीना भी सिखाती हैं। अलग–अलग एकल परिवार से निकल कर कभी सामूहिक रूप से यात्रा कर के देखिये, एक–दूजे के सुख–दुख बाँटने का यह अवसर होता है।
हमारा मन अपने आप में एक ब्रह्माण्ड है। यहाँ बाह्य जगत का आविर्भाव और दर्शन दोनों होता है। अपने चैतन्य अवस्था में दृश्य और देखने की प्रक्रिया जब एक-दूसरे को आत्मसात कर लेते हैं, तब उससे उत्पन्न आनंद शाश्वत हो जाता है। वह एक ईश्वरीय आभास के साथ मानस पटल पर जीवन भर के लिए अंकित हो जाता है। इसलिए यात्रा के दौरान मन को भी जागृत रखना चाहिए। यहाँ चॉकलेट खूब बनते हैं क्योंकि कोकोआ की खेती बहुत होती है। यह लघु उद्योग की तरह घरों में बनाया जाता है। कभी चावल की तीन फसलें एक साल में होतीं थीं, पर अब पानी की कमी के कारण एक बार ही यह फसल होती है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों के साथ अब इन जगहों में उत्तर भारत के भी खाद्य–पदार्थ मिलने लगे हैं। अल्प समय में मदुरै–कोडईकनाल का ट्रिप बहुत अच्छा माना जाता है। इन स्थानों में जाने के सभी साधन उपलब्ध हैं। चेन्नई से अनेक ट्रेन मदुरै को जाती हैं। वैसे तो यात्रा अब किसी विशेष मौसम का मोहताज नहीं है, फिर भी बारिश के बाद का ख़ुशनुमा मौसम सबसे अच्छा है।
– डॉ. कविता विकास