हाइकु
पर्यावरण’ पर कुछ हाइकु
बन रहे हैं
बहु मंजिले मकान
पेड़ निराश।
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पेड़ समाप्त
पक्षी को ठौर नहीं
बैचैनी-प्यास।
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वृक्ष कटते
बंजर, सूखा, बाढ़
कैसा सौगात!
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बंजर भूमि
सजग हुए हम
चमन बना।
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सिर्फ उदासी
मिल पायी तुझको
मुझे काट के।
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मुझे बचाओ
वृक्ष करे पुकार
आयी आवाज।
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सहेजे रखो
प्रकृति ने दिया
इतना कुछ।
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लता पेड़ से
रखे जो संबंध
हम क्यों नहीं।
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बस्ती के बीच
हरे-भरे पेड़ थे
सभी सुखी थे।
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मानव धर्म
ठीक रहे हमारा
पर्यावरण।
– प्रभात कुमार धवन
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