बाल-वाटिका
परीलोक में चोरी
बादलों के पार परियों का बहुत ख़ूबसूरत देश है, जहाँ रंग-बिरंगी परियाँ रहती हैं। साथ ही उन परियों के कुछ बौने दोस्त भी हैं, जो मुश्किल से दो फिट से ज्यादा लंबे नहीं हैं। परीलोक में रहने वाली परियों के नाम उनके पंखों के रंगों के अनुसार रखे गये हैं। जैसे- लाल पंख वाली लालपरी, नीले पंख वाली नीलमपरी, गुलाबी पंख वाली गुलाबी परी, सुनहरे पंख वाली सोनपरी और चाँदी जैसे चमकते पंख वाली चंदापरी।
एक दिन परीलोक में एक बहुत बड़ी समस्या आ गयी। वहाँ कुछ लोगों का सामान चोरी होने लगा। रोज किसी न किसी का कोई सामान गायब होता। सारी परियाँ और बौने परेशान थे कि आखिर परीलोक में चोरी कौन कर रहा है?
धीरे धीरे यह बात रानी परी के पास पहुँची। वो भी चिंतित हो गयीं। अब से पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। रानी परी ने गुलाबी परी को चोर का पता लगाने का काम सौंपा। वह परीलोक की जासूस थी। रानी परी की आज्ञानुसार गुलाबी परी अपने काम पर लग गयी। वह दिन भर एक-एक परी और बौनों की गतिविधियों पर नजर रखने लगी।
दो दिन बीत गये लेकिन गुलाबी परी के हाथ कोई सुराग नहीं लगा। परीलोक में सभी का शक सोनपरी के ऊपर था, क्योंकि सोनपरी कुछ दिन पहले ही परीलोक में आई थी। वह बहुत खूबसूरत और पढ़ने में तेज थी।
सोनपरी जबसे परीलोक आई थी, चारों तरफ उसकी ही तारीफ होने लगी थी। जबकि उससे पहले चंदापरी की ही तारीफ होती थी। चंदापरी हमेशा क्लास में फर्स्ट आती थी। वह बहुत सुन्दर भी थी। लेकिन अब सोनपरी क्लास में फर्स्ट आने लगी और चंदापरी सेकेंड। ये बात चंदापरी के दोस्त बिल्लू बौने को जरा भी अच्छी नहीं लगती। वह चाहता था कि सभी चंदापरी की तारीफ करें। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? जो बेहतर होगा, तारीफ उसी की होगी।
गुलाबी परी को भी अब सोनपरी चोर लगने लगी क्योंकि परीलोक में चोरियाँ सोनपरी के आने के बाद ही शुरू हुई थीं। गुलाबी परी ने यह बात रानी परी को बताई। रानीपरी सोच में पड़ गयीं। लेकिन बिना सबूत वे किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती थीं। उन्होंने ऐलान कर दिया कि ‘कल सुबह सबके घर की तलाशी ली जाएगी, जिसके घर से चोरी का सामान बरामद होगा, वही चोर माना जाएगा और उसे परीलोक छोड़कर जाना पड़ेगा।’
सभी के चेहरों पर संतुष्टि के भाव थे। सोनपरी भी खुश थी कि अब असली चोर सामने आ जाएगा। लेकिन बिल्लू बौना कुछ विचलित नजर आ रहा था। चंदापरी ने उससे पूछा भी लेकिन वह कुछ नहीं बोला।
अगले दिन सभी के घरों की तलाशी ली गयी। लेकिन किसी के घर से कुछ नहीं मिला। अब आखिरी में सोनपरी के घर की तलाशी ली जानी थी। उसने घर के दरवाजे खोल दिए ताकि सही से तलाशी ली जा सके लेकिन उसके घर से भी तलाशी में कुछ नहीं मिला।
सभी वापस जाने ही वाले थे कि तभी बिल्लू बौना बोला कि हमें सोनपरी की छत पर भी तलाशी लेनी चाहिए। छत पर पहुँचते ही सभी चौंक गये। वहाँ कोने में चोरी किया हुआ सामान रखा था। अब तो साबित हो चुका था कि सोनपरी ही चोर है क्योंकि उसी के घर से सामान मिला था। सोनपरी को रानीपरी के सामने लाया गया ताकि, वह अपनी सफाई में कुछ कह सके। सोनपरी ने बस इतना ही कहा कि ‘वह चोर नहीं है और न ही उसे छत पर मिले सामान के बारे में कुछ पता है।’
लेकिन चोरी का सामान उसके घर से मिला था तो उसे परीलोक छोड़ना ही था। उसके पास कोई सबूत नहीं था, जिससे वह यह साबित कर सके कि वह चोर नहीं है। उसने रोते-रोते परीलोक छोड़ने की तैयारी कर ली।
चंदापरी को सोनपरी का जाना बहुत तकलीफ दे रहा था। उसने अपने दोस्त बिल्लू बौने का हाथ पकड़ा और उसे रानीपरी के महल की ओर ले जाते हुए कहा, “बिल्लू! चलो हम रानीपरी से प्रार्थना करेंगे कि वे सोनपरी को परीलोक से जाने से रोक लें। मुझे पूरा यकीन है कि चोरी उसने नहीं की है।”
“अरे! चंदापरी तुम यह क्या करने जा रही हो? कितनी मुश्किल से सोनपरी को परीलोक से निकाले जाने का मेरा प्लान कामयाब हुआ है। अब देखना चारों तरफ बस तुम्हारी ही प्रशंसा हुआ करेगी।” बिल्लू ने मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन यह सुनकर चंदापरी चौंक गयी। वह लगभग चीखते हुए बोली, “बिल्लू!!! तुमने यह क्या किया? मेरे लिए सोनपरी को तुमने चोर बना दिया? तुमको अभी चलकर रानीपरी और सोनपरी से माफी माँगनी होगी।” बिल्लू ने सिर झुका लिया। दोनों रानीपरी के पास पहुँचे। वहाँ बिल्लू ने अपनी गलती स्वीकार कर ली। रानीपरी ने बिल्लू को परीलोक से जाने का आदेश दे दिया। लेकिन जैसे ही सोनपरी ने यह सुना, वह भागते हुए रानीपरी के पास पहुँची और हाथ जोड़ते हुए बोली, “रानीपरी प्लीज़ आप बिल्लू को परीलोक से मत निकालिए। उसने जो भी किया अपनी दोस्त चंदापरी के लिए किया। हाँ मैं मानती हूँ कि बिल्लू को इस तरह गलत रास्ता नहीं अपनाना चाहिए था। मैं बिल्लू की तरफ से आपसे माफी माँगती हूँ।”
बिल्लू ने दुबारा कभी ऐसा न करने का प्राॅमिस किया। उसने रानीपरी और सोनपरी से माफी माँगी। सोनपरी ने अपने नये दोस्त नन्हें बिल्लू को गले लगा लिया।
– अल्का श्रीवास्तव