उभरते-स्वर
पत्थर दिल
चादर पर पड़ी ढेरों सिलवटें
कुछ टूटे बाल
तकिये पर गिरी आँसुओं की बूँदें
और सूजी हुई आँखें
कह रही हैं कि आज वो
पूरी रात सोई नहीं है
तुम्हें याद करते करते
बैचैनी का भार सर पर लादे
करवटें बदलते-बदलते
असीमित रैन काटी है उसने
आज तुम्हारे लिए
नींद से भी दुश्मनी हो गयी
ज़माने से तो कबसे है दुश्मनी
और तुम नींद से दोस्ती निभाते हुए
उसके आँगन में पड़े चैन के झूले पर
झूल रहे हो
उसकी चिंताओं से दूर
पत्थर दिल
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कल्पनाओं से जीवंत शहजादी
ऐ मेरी कल्पनाओं से
जीवंत शहजादी!
तुमसे मिलने को
मेरा दिल बेचैन रहता है
तुमसे रूबरू होना चाहता हूँ
तुम्हारी झील-सी आँखों में
डूबकर उसकी
गहराई नापना चाहता हूँ
बालों में उलझकर
सुलझना चाहता हूँ
तुम्हारी होंठो की लालिमा देख
चिढ़ते हुए गुलाब की कोमलता
को कठोर बनते हुए
देखना चाहता हूँ
तुम्हारे गीतों से चहकते हुए
पक्षियों का खुले आसमान में
झूमना, देखना चाहता हूँ
जानता हूँ कल्पना
को हकीकत बनाने के लिए
समय की धारा में बहकर
दूर तलक जाना होता है
मैं तैयार हूँ
मैं तुम्हारी चाह की नाव
में बैठकर
इस धारा में तैर जाऊंगा
इसी उम्मीद के साथ
कि कभी तो मेरी इस कल्पना
का कोई अस्तित्व होगा
– अर्जित पाण्डेय