फिल्म जगत
पंजाबी सिनेमा का समीक्षात्मक अंकलन एवं आर्थिक सर्वेक्षण : 21 वीं सदी के विशेष संदर्भ में
मन सिनेमा तन सिनेमा मेरा रोम रोम सिनेमा … सिनेमा या फिल्मों का नाम लेते ही यह बात मेरे अंतर्मन में गूंजने लगती है। सिनेमा का कोई भी रूप हो मुझे हमेशा से लुभाता रहा है। मुझे ही क्यों बल्कि इस नश्वर दुनिया के अमूमन हर व्यक्ति ने कभी न कभी सिनेमा जरुर देखा है, जब से इसका दृश्यांकन शुरू हुआ है। राजा महाराजाओं के समय में यह नाटक के रूप में था तो वर्तमान में यह तकनीक के दौर में परिवर्तित हो गया है। और आज जब हमारा सिनेमा एक शतकीय जीवन पार कर चुका है तो इसके विभिन्न रूप हमारे सामने नजर आने लगे हैं। इन सब में क्षेत्रीय सिनेमा ने भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आज के समय में मराठी, तमिल, तेलुगू फिल्मों के सबसे अधिक रीमेक बनाए जा रहे हैं किन्तु इन सबके बीच पंजाबी सिनेमा भी तेजी से सबके सामने अपनी पहचान बनाता नजर आ रहा है। कई गायक और कलाकारों ने इस पंजाबी सिनेमा जिसे पॉलीवुड की संज्ञा भी दी जाती है, से निकल कर बॉलीवुड में भी अपनी पहचान तो बनाई ही साथ ही अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भी खूब चमक बिखेरी है। पंजाबी सिनेमा भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में समान रूप से प्रसिद्ध है और यह इसकी सबसे बड़ी विशेषता भी है। हालांकि कहने को तो बॉलीवुड भी पाकिस्तान में बखूबी पसंद किया जाता है किन्तु किसी क्षेत्रीय भाषा की पहुँच का दूसरे देश तक व्याप्त होना गौरवान्वित विषय है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि पाकिस्तान में भी पंजाबी भाषा बोलने और समझने वाले लोग अच्छी-ख़ासी संख्या में मौजूद हैं।
अब बात करूँ पंजाबी सिनेमा के इतिहास या इसके निर्माण की प्रक्रिया कि तो संक्षेप में कह सकते हैं कि – पंजाबी सिनेमा जो कि पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी लिपि एवं शाहमुखी लिपि में लिखा और तत्पश्चात फिल्माया जाता है, कि वर्तमान में भारत में लगभग 196 स्क्रीन उपलब्ध है, जहाँ यह दिखाया जाता है। और इसके मुख्य वितरकों में वर्तमान में सिप्पी ग्रेवाल प्रोडक्शंस, व्हाइट हिल प्रोडक्शंस, रिदम बॉयज़ एंटरटेनमेंट और हम्बल मोशन पिक्चर्स है। विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजाबी सिनेमा का सकल बॉक्स ऑफिस उत्पादन साल 2014 तक संपूर्ण रूप से 10 अरब यानी कि 140 मिलियन US डॉलर था और राष्ट्रीय स्तर पर यह 9.5 अरब यानी 130 मिलियन US डॉलर था।
पंजाबी सिनेमा की शुरूआत की बात कि जाए तो इसका बनना साल 1928 की फिल्म “बेटों की बेटी” के साथ हुई है, जो पंजाब में सबसे पुरानी फीचर फिल्म होने का स्थान भी रखती है। तब से लेकर अब तक पंजाबी सिनेमा में कई फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें से कई फिल्मों ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी हासिल की है । यूँ तो 1920 के अविभाजित भारत देश जिसे इतिहासकारों ने ब्रिटिश इंडिया की संज्ञा दी है , के पंजाब की प्रांतीय राजधानी लाहौर में फिल्म का परिचालन शुरू हुआ । भारतीय फिल्म जगत की तरह ही पंजाबी भाषा में भी एक समय तक मूक फ़िल्में ही बनी थी ।
कुछ कारणों से हिंदी सिनेमा और अंतर्राष्ट्रीय फ़लक पर 21 वीं सदी के आरम्भ में पंजाबी भाषा की वर्ष 2000 में अविनाश वाधवान, उपासना सिंह, परमवीर और दीपशिखा अभिनित केवल एक ही फिल्म रिलीज हो पाई थी , जिसका नाम था ‘दर्द परदेसां दे। एक दो साल बाद पंजाबी सिनेमा में बड़ा परिवर्तन साल 2002 में आई फिल्म ‘जी आयन नु’ से देखने को मिलता है। अभिनेता हरभजन मान और मनमोहन सिंह द्वारा निर्देशित इस फिल्म को अब तक के सबसे बड़े बजट (9 करोड़) के साथ बनाया गया था । पंजाबी सिनेमा का दाँव उसके लिए बड़ी सफलता तथा सम्भावनाएँ लेकर आया । यहाँ से जो लहर पंजाबी सिनेमा की बहने लगी थी उसका रूख 2008 तक आते-आते इतना विस्तृत हो गया कि एक के बाद एक बड़ी संख्या में फिल्में बनाई गईं। जिनमें शामिल थीं – ‘हशर: ए लव स्टोरी’, ‘यारियाँ’ , ‘मेरा पिंड’ , ‘लख परदेसी होए’ , ‘हैवन ऑन अर्थ’ और ‘सत श्री अकाल’। 2009 में ‘जग जियों दिया दे मेले’ तथा ‘तेरा मेरा की रिश्ता’ सुपरहिट फिल्म बनी लेकिन अभी तक की सभी पंजाबी फिल्मों में सबसे ज्यादा कमाई करने का रिकोर्ड ‘मनमोहन सिंह’ की ‘मुंडे यूके दे’ के नाम रहा। इस फिल्म ने मनमोहन सिंह द्वारा निर्देशित ‘दिल अपना’ (पंजाबी फिल्म) का रिकॉर्ड तोड़ा था।
साल 2010 का पंजाबी सिनेमा या कहें पॉलीवुड के लिए बड़ी सम्भावनाएँ लेकर आया और इस वर्ष में 16 फिल्में जारी की गईं। जिमी शेरगिल अभिनित ‘मेल करा दे रब्बा’ ने अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली पंजाबी फिल्मों में सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए और 110 करोड़ कुल कमाई की और इस प्रकार यह अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली पंजाबी फिल्म बनी।
साल 2011 में हर्षदीप कौर और यामी गौतम अभिनीत फिल्म ‘एक नूर’ रिलीज हुई । पंजाबी सिनेमा के इतिहास में अब तक ‘ईश अमितोज कौर’ निर्देशित ‘छाँवाँ दरिया’ (The Sixth River ) सितंबर 2011 में रिलीज होने वाली पहली पंजाबी महिला निर्देशित फिल्म थी । इसके अलावा यह पहली पंजाबी फिल्म थी जिसे किसी महिला ने न केवल निर्देशित और निर्मित किया अपितु स्क्रिप्ट राइटिंग यानी पटकथा लेखन का काम भी किया । फिल्म में गुलशन ग्रोवर , नीना गुप्ता , मनप्रीत सिंह, लखविंदर वडाली, क्रिस्टा कैनन और राणा रणबीर ने मुख्य भूमिका अदा की थी।
फरवरी 2011 में पीटीसी पंजाबी चैनल ने पंचकुला में पहली बार पीटीसी पंजाबी फिल्म पुरस्कार समारोह का आयोजन किया। यह समारोह पंजाबी फिल्म उद्योग के लिए एक जबरदस्त औषधि तथा संजीवनी बूटी लेकर आया। ओम पुरी , प्रेम चोपड़ा, गुरदास मान , गुड्डू धनोआ, प्रीती सप्रू , रजा मुराद , सतीश कौल , मनमोहन सिंह , अमरिंदर गिल , गिप्पी ग्रेवाल , जसबीर जस्सी , पुनीत इस्सार, राकेश बेदी , राम विज , सुधांशु पांडे और आकृति कक्कड़ जैसे प्रसिद्ध कलाकार इसके हिस्सा बने ।
2011 का साल पंजाबी सिनेमा की अब तक की बनी हुई प्रतीकात्मक एन आर आई वाली छवि “Typical NRI- Centered” वाली छवि से दूर हो गया । दिलजीत दोसांझ अभिनित ‘The Lion of Punjab’ और रणवीज सिंह अभिनित ‘धरती’ जैसी फिल्मों के आने से इसने एक सार्थक और रचनात्मक कहानियों की ओर रूख किया । ‘जिने मेरा दिल लुटिया’ साल 2011 की वह पंजाबी फिल्म है जिसने 125 करोड़ रुपए की कमाई करके एक नया चैलेन्ज पंजाबी फिल्म के निर्देशकों, कलाकारों तथा निर्माताओं के समक्ष प्रस्तुत किया । मनदीप कुमार निर्देशित तथा बत्रा शोबीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित, धीरज रतन द्वारा लिखित इस फिल्म ने पंजाबी फिल्मों की उस सीमा रेखा को पार किया जहाँ से खड़े होकर पंजाबी सिनेमा को एक नए स्तर पर देखा जा सकता है। जिसमें अनेक सम्भावनाएँ विद्यमान हैं।
अक्टूबर 2011 में आई फिल्म ‘यार अन्नमुले’ जिसमें युवराज हंस जैसे नए-नए कलाकार थे तो वहीं उनके साथ थे प्रसिद्ध कलाकार हरीश वर्मा। इस फिल्म ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी ख़ासी कमाई की और यह आज भी पंजाबी सिनेमा को पंसद करने वाले दर्शकों ख़ास करके युवाओं के बीच ख़ासी देखी जाती है। वर्ष 2012 को पंजाबी सिनेमा के सुनहरे दौर के रूप में याद किया जाएगा। इस वर्ष में हॉलीवुड-स्टाइल फिल्म ‘मिर्जा-द अनकॉल्ड स्टोरी’ सबसे बड़े बजट के साथ फ़िल्मी पर्दे पर उतरी। करीबन 90 करोड़ यानी 1.3 करोड़ US डॉलर की बड़े बजट वाली यह फिल्म रही । इसके ठीक बाद ‘जट एंड जूलियट’ ने पंजाबी सिने प्रेमियों के दिलों में ऐसी पैठ बनाई की इसे अब तक की पंजाबी सिनेमा के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब अपने नाम किया । इस फिल्म ने पंजाबी फिल्म उद्योग को एक साथ दो सुपरस्टार के रूप में दिलजीत दोसांझ और नीरू बाजवा को मिलवाया। इसी वर्ष में कई प्रोडक्शन हाउसों ने बहुत सी कॉमेडी फिल्मों का उत्पादन शुरू किया । और इन फिल्मों के निर्माण के फलस्वरूप पंजाबी फिल्म उद्योग को बिन्नू ढिल्लों , गुरप्रीत घुगी , जसविंदर भल्ला , राणा रणबीर , करमजीत अनमोल और बीएन शर्मा जैसे कभी न भुलाए जाने वाले कॉमेडियन मिले।
अगस्त 2012 में टोरंटो, कनाडा में पहली बार पंजाबी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म अकादमी पुरस्कार आयोजित किए गए। इस आयोजन के परिणामस्वरूप पंजाबी फिल्म फेस्टिवल अमृतसर , मा बोली अंतर्राष्ट्रीय पंजाबी फिल्म फेस्टिवल, वैंकूवर और पंजाबी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल , टोरंटो जैसे प्रतिष्ठित आयोजन सालाना आयोजित किये जाने लगे । 2012 के स्वर्णिम युग की अविरल सिने यात्रा ऐसी बही कि वर्ष 2013 में इसने एक और पड़ाव पार किया तथा दर्शकों के साथ-साथ निर्माताओं, निर्देशकों के मन में जिज्ञासाएँ उत्पन्न होने लगी तथा नए अवसर की तलाश में कई युवाओं ने हाथ आजमाने भी शुरू किए। इसी वर्ष में ‘जट एंड जूलियट के सिक्वेल के साथ प्रस्तुत की गई ‘जट एंड जूलियट- 2 इसने अपनी प्रीक्वेल के भी तमाम रिकॉर्ड को ध्वस्त किया। तथा पाकिस्तानी पंजाब में 15 से अधिक स्क्रीनों पर ‘जट एंड जूलियट- 2 को भी रिलीज की हरी झंडी मिली।
पंजाबी सिनेमा जगत में यदि इसके समानांतर फिल्मों को देखा परखा जाए तो सामाजिक मुद्दों और पंजाब के मौजूदा हालातों की वास्तविकता को केंद्र में रखते हुए भी कई सार्थक फिल्में वर्ष 2013 में बनी । उनमें से ‘नाबार’, ‘स्टुपिड 7’ , ‘सिकन्दर’ , ‘साडा हक’ , ‘बिक्कर बाई सेंटिमेंटल’ , ‘दस्तार’ , ‘पंजाब बोलदा’ , ‘हानी’ , ‘दिल परदेसी हो गया’ आदि फिल्मों ने राष्ट्रीय पुरस्कार भी अपने नाम किए । इसी वर्ष पॉलीवुड की मैनी परमार द्वारा निर्मित और निर्देशित पहली पंजाबी 3 डी फीचर फिल्म पहचान 3 डी रिलीज हुई और एनिमेशन के मामले में भी पंजाबी सिनेमा जगत फलने-फूलने लगा। इरफान खान अभिनित ‘क्यूसा’ को कभी नहीं भुलाया जा सकता । इस फिल्म में शानदार अभिनय के लिए इरफ़ान खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। क्वींसलैंड के भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में क्यूसा ने चार इनाम अपने नाम किये जिसमें तिलोतमा शोम सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, अनुप सिंह सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सेबेस्टियन एडस्मिड सर्वश्रेष्ठ सिनेमेटोग्राफी शामिल थे।
वर्ष 2014 में पंजाबी फिल्मों की एक बाढ़ सी आई और इस साल तकरीबन 42 फिल्मों को रिलीज किया गया। जिनमें अधिकाँशत: कॉमेडी फ़िल्में थीं। इस साल की सबसे सफल फिल्मों में ‘चार साहिबजादे (3 डी, एनिमेशन आधारित) यह फिल्म बड़े पर्दे के लिए पहली ब्लॉकबस्टर हिट रही। मध्यप्रदेश , दिल्ली , पंजाब , उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की सरकारों द्वारा इस फिल्म को कर मुक्त भी कर दिया गया था। वैश्विक स्तर पर इस फिल्म ने कुल 700 करोड़ की कमाई की । चार साहिबजादे के अलावा गिप्पी ग्रेवाल की ‘जट जेम्स बॉन्ड’ , ‘डिस्को सिंह’ , ‘डबल दी ट्रबल’ , दिलजीत दोसांझ की ‘पंजाब 1984’ , ‘मिस्टर एंड मिसेज 420’ , ‘गोरेया नु दफ्फा करो’ शामिल थीं । तो दूसरी और कई दिल को छूने वाली ऐसी फ़िल्में भी रही जिनकी ज्यादा चर्चा सिने बाजार में नहीं हो पाई । इन फिल्मों में 1984 के दंश की ‘पंजाब 1984’ , ‘कौम दे हीरे’ , ‘47 से 84’ , ‘हुन मैं किसनू वतन कहूँगा’ शामिल थीं।
साल 2015 , 2016 और 2017 में भी लगातार फ़िल्में बनती रहीं किन्तु ‘चार साहिबजादे’ का वैश्विक रिकोर्ड जाने कब टूट पायेगा। इस तिलस्मी रिकोर्ड को तोड़ने वाली ऐसी कोई फिल्म हाल के वर्षों में भी पंजाबी फिल्म उद्योग के खाते में नजर नहीं आ रही। प्रतिस्पर्धाओं के इस सिनेमाई बाजार का असर भी सबसे ज्यादा पंजाबी फिल्म उद्योग पर ही पड़ा है। पंजाबी भाषी क्षेत्रों में कम सिने स्क्रीन्स का होना इसके लिए एक बड़ी समस्या था सम्भवत: इस उद्योग जगत ने विदेशों में अपनी पैठ बनानी शुरू की जहाँ पंजाबी भाषा के जानकार अच्छी ख़ासी संख्या में निवास करते हों । इन देशों में आस्ट्रेलिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, मलेशिया न न्यूजीलैंड , कनाडा आदि शामिल है। हाल के वर्षों में तो कनाडा पंजाबी फिल्मों की शूटिंग के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय स्थान है और यह वर्तमान में पंजाबी फिल्म उद्योग का दूसरा सबसे बड़ा बाजार भी है। यही कारण है कि कई पंजाबी फिल्मों ने विदेशी बाजारों में बॉलीवुड फिल्मों की कुल कमाई के रिकोर्ड को भी तोड़ा है।
वर्ष 2018 में पहली बार युद्ध-आधारित पंजाबी फिल्म ‘सज्जन सिंह रंगरूट’ रिलीज हुई। प्रथम विश्व युद्ध पर आधारित इस फिल्म ने भी अच्छी-ख़ासी कमाई की। पंजाबी फिल्मकारों को इस तरह की कुछ प्रेरणास्पद कहानियों पर फ़िल्में बनाने के लिए तथा उन पर सोचने के लिए फिर से मजबूर किया। इन सभी तथ्यों के आधार पर देखा-परखा जा सकता है कि पंजाबी फिल्म उद्योग भी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के साथ कदमताल करता हुआ उन्हें ही नहीं अपितु बॉलीवुड को भी कड़ी टक्कर देने के प्रयास निरंतर करता आ रहा है।
– तेजस पूनिया