हायकु
हायकु
कैसे कहूँ मैं
न समझोगी तुम
दिल की बात
प्यार किया
उनसे मैंने यार
कह न सका
मेरी चाहत
समझता नहीं वो
बताऊं कैसे
एक चाहत
मन की बात कहूँ
उससे कभी
अच्छा लगा
तुमसे मिलकर
सच में यार
तुम बुलाओ
अगर मानती हो
मेरी तरह
क्यों रुठी हो
बताओ न सनम
दरद न दो
कहो न जी
कुछ बात अपनी
बोलो न यार
कुछ करो न
मनमीत हमारे
बात प्रेम की
कहाँ हो तुम
ढूँढा हर तरफ
तुमको मैंने
उसकी याद
तड़पाती क्यों है
इतना मुझे
– डॉ. अरुण कुमार निषाद
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