ख़बरनामा
नीतियाँ अविवेक को दूर करती हैं
संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उच्च शिक्षा विभाग उत्तरप्रदेश के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित ‘संस्कृत वाङ्मय में नीति तत्व विमर्श’ नामक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (16-17 मार्च 2019) के प्रथम दिवस मुख्यवक्ता के रूप में बोलते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि- ‘नीति का अर्थ वैदिक संस्कृति में धर्म का पालन करना होता है। इस कारण चारों पुरुषार्थ में धर्म का स्थान पहला है।’ संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्ण कुमार मिश्र ने कहा कि- ‘विद्वान ईर्ष्या से, अधिकारी और राजा घमण्ड तथा बाकी लोग अबोधता से ग्रसित हैं। ऐसे में नीति की बात करने वाला कोई नहीं है।’ कला संकाय अधिष्ठता प्रो. पी.सी. मिश्र ने कहा कि- ‘नीतिग्रन्थों की बातों को अपनाकर व्यक्ति जीवन सफल बना सकता है।’ संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि संस्कृत की उक्तियाँ और नीति वाक्य हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं। इसी क्रम में प्रथम दिन सांस्कृतिक संध्या अन्तर्गत कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने की तथा संचालन डॉ. राम विनय सिंह ने किया। कवितापाठ करने वाले कविओं में प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र, डॉ. रामविनय सिंह, प्रो. रामसुमेर यादव, डॉ. प्रमोद भारतीय, डॉ. वनमाली विश्वाल, डॉ. प्रयाग नारायण मिश्र, डॉ. अरुण कुमार निषाद, शोधछात्र अरविन्द यादव और आशुतोष आदि ने अपनी कविताओं के माध्यम श्रोताओं का मन मोह लिया।
दूसरे दिन मुख्यवक्ता के रूप बोलते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के आचार्य पद्मश्री बृजेश कुमार शुक्ल ने कहा कि– ‘अविवेक बहुत-सी विपत्तियों को आमन्त्रित करता है। नीतियाँ अविवेक को दूर करती हैं। इसलिए मनुष्य को इसका सहारा लेना चाहिए।’ उ.प्र. संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र कहा कि- ‘संस्कृत भाषा हर जगह नीति का प्रसार करती है | संस्कृत भाषा की व्यापकता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि लगभग हर भाषा में इसके शब्दों का उपयोग हो रहा है।’ पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ओम प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि- ‘संस्कृत नीति के ग्रन्थ पञ्चतन्त्र ने संसार के सभी देशों की यात्रा की है। इससे इस भाषा और इसकी नीतियों की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है।’ सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अशोक कुमार कालिया ने कहा कि- ‘संस्कृत में नीतियों की कमी नहीं है। लेकिन इसे आचरण में लाना हम सबकी जिम्मेदारी है।’ कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रतिकुलपति प्रो. राजकुमार सिंह ने की। उन्होंने कहा कि- बच्चों में संस्कृत के श्लोक संस्कार भरने का काम करते हैं।
इस अवसर पर विभाग के पूर्व शोधछात्र अरुण कुमार निषाद की पुस्तक ‘आधुनिक संस्कृत की महिला रचनाधर्मिता’ नामक पुस्तक का विमोचन भी हुआ। पुस्तक के विषय में चर्चा करते हुए डॉ. निषाद ने बताया कि इस पुस्तक में समकालीन समय की लगभग सभी विधाओं के विषय में बताया गया है। इस संगोष्ठी में लगभग एक सौ पचास शोधपत्रों का वाचन हुआ। संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. राम सुमेर यादव ने सभी अतिथियों का स्मृतिचिह्न और अंगवस्त्र से स्वागत किया। कार्यक्रम के आयोजक डॉ. अशोक कुमार शतपथी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
– डॉ. अरुण कुमार निषाद