पाठकीय
नित नये आयाम छूती, नव सृजन हस्ताक्षर: इशान अहमद
साहित्य की सृजनशील वेब पत्रिका ‘हस्ताक्षर’ का मैं नियमित पाठक हूँ। हस्ताक्षर के लिए पाठकीय लिखना मेरे लिये एक अद्भुत अनुभव है। इस पत्रिका की विषय वस्तु इतनी सहज एवं सरल है कि किसी भी पाठक के लिए पत्रिका को पढ़ना बेहद आसान है। पत्रिका के सभी काॅलम सुव्यवस्थित और संगठित होने के कारण रचनाओं का चयन बड़ा ही रोचक हो जाता है। आज के दौर में यदि देखा जाए तो देश की तरक्की का रास्ता जागरूकता के द्वार से होकर गुजरता है। हस्ताक्षर के अगस्त अंक का संपादकीय इसी भावना को इंगित करता है। पत्रिका की संपादक व संस्थापक प्रीति ‘अज्ञात’ जी द्वारा लिखा गया यह संपादकीय इतना सशक्त, सरल व संभावनाओं से भरा हुआ है कि यह पूरे देश के लिए पठनीय व अनुकरणीय है।
पहले कविता फिर ग़ज़ल व कहानी का क्रम इतना सटीक है कि कोई भी पाठक पत्रिका को पढ़ने के लिए मजबूर हो जाता है। कविता-कानन में आरती तिवारी अंजलि, गोपेश आर शुक्ल व अजय सिंह राणा की कविताएँ आकर्षक व सार्थक हैं। आरती जी की एक कविता में प्रेम का पुट देखिये-
एक दूजे को इत्तला दिये बगैर
मन होते गये एक
दूध मे घुली मिश्री की तरह
गोपेश आर शुक्ल की दार्शनिकता देखिए-
देवालयों में निष्प्रयोजन
एक कतार में भी जलकर हमें
कभी उतनी खुशी नहीं होती
जितना आनन्द हमें किसी जरूरतमंद के लिये
जलकर बुझ जाने में आता है
इसी के साथ-साथ अजय सिंह राणा की कविताएँ हमें किसी और ही दुनिया में ले जाती हैं। इसी तरह हमारा सामना ग़ज़ल-गांव से होकर गुजरने पर रंजन आज़र, शिज्जू शकूर व इमरान हुसैन ‘आजाद’ की बेहतरीन ग़ज़लों से होता है। रंजन आज़र की ग़ज़ल का एक शेर बहुत प्रभावित करता है-
हवा, पानी का तू मज़हब बता दे
या मज़हब की हर इक दीवार ढा दे
अपनी बेहतरीन व बेबाक शैली के लिए मशहूर पत्रिका के संपादक जनाब के.पी. अनमोल ने रचना समीक्षा काॅलम में ‘पीपल बिछोह में’ का एक्स-रे किया है। इस समीक्षा को पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे पूरी पुस्तक को पढ़ लिया हो। ‘ग़ज़ल की बात’ काॅलम का मैं नियमित पाठक हूँ। इस कॉलम की सातवीं किस्त में प्रसिद्ध ग़ज़लकार जनाब खुर्शीद खैराडी ने सबसे छोटी बह्र ‘बहरे मीर’ का बड़े ही सहज व सरल भाव से वर्णन किया है। मुझे इस काॅलम के कारण भी पत्रिका के अगले अंक की प्रतीक्षा रहती है। पत्रिका के आलेख/विमर्श काॅलम में डॉ. मोनिका देवी ने नये उपन्यासों में पर्यावरण विमर्श के अंतर्गत जिन उपन्यासों को सम्मिलित किया है, वे पर्यावरण के क्षेत्र मे लिखे गए अभूतपूर्व उपन्यास हैं। छंद संसार मे रमेश शर्मा के दोहों में पर्यावरण संरक्षण के पुट के साथ-साथ प्रेम व भाइचारगी के कम होते जा रहे ग्राफ पर चिंता व्यक्त की गई है। एक दोहा देखें-
रिश्तों में खुशबू नहीं, हुआ नदारद प्यार।
सच पूछो तो रह गया, अब मौखिक व्यवहार।।
पत्रिका के ‘जो दिल कहे’ काॅलम ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। अरुण चन्द्र राय के लेख ‘हम सब शिकार होंगे इंतजार में रहिए’ में लेखक ने आज के दुरूह होते जा रहे सामाजिक ताने-बाने की जितनी पोल खोल सकते थे, उतनी पोल खोली है। गार्ड, स्कूल टीचर, माली, स्कूल बस कंडक्टर, रेहड़ी वाला, रिक्शावाला, पैंट्री वेंडर, पुलिस उन्होंने किसी को भी नही बख्शा है, “बाज़ार मे सब्जी वाले लौंडों की बात सुनिए, फल बेचने वाले लड़कों की बात सुनिए, उनके दिअर्थी संवाद सुनिए,केला, बब्बूगोशा,नाशपाती, संतरा कई मायने बनाये होते हैं। वे रिपीडेटली रेप करते हैं। बातों से नजरों से…… ।” दूसरी प्रस्तुति में आकाश नौरंगी ने अपनी कविता से बुलंदशहर की घटना की बड़ी बारीकी से मार्मिक पड़ताल की है।
ख़ास-मुलाकात में के.पी. अनमोल साहब ने ‘छंद मंजरी’ के रचयिता सौरभ पांडेय जी से बात कर उनके रचनाशील जीवन का रस निकालकर पेश किया है। यह रस हर नव रचनाकार के लिए विशेष अनुकरणीय है।
स्मृति काॅलम में पत्रिका ने बड़े ही सार्थक रूप से हिंदी के महान हस्ताक्षर स्वर्गीय महाश्वेता देवी व ओमपुरोहित कागद याद किया है। दोहा छंद के नए जादूगर जनाब अमन चाँदपुरी के खोजी और अन्वेष्णात्मक संस्मरण को पहली बार पढ़ने का मौका मिला। के.डी. चारण द्वारा की गई डॉ. लवलेश दत्त कृत ‘नेग’ कहानी की समीक्षा बेलाग व पठनीय है। इसी प्रकार प्रीति ‘अज्ञात’ जी द्वारा दौपदी के नाम लिखा ख़त दर्द मे मजे लूटने वाले रचनाकारों के लिए रचनात्मकता व सभ्यता का पाठ देता है। साहित्य मे प्रयोग की जा रही असभ्यता पर कटाक्ष करते हुए वे कहती हैं –
‘कविता गलत हाथो में पड़कर अब सीधा गुंडई पर उतर आयी है।’
बाल वाटिका से डॉ. सुधा गुप्ता की कहानी सीधी, सरल व संदेशप्रद है। कुल मिलाकर हस्ताक्षर का अगस्त अंक अन्य अंकों की भाँति और अधिक मजबूत व बेहतरीन संकलन है। अन्य सभी बेहतरीन आवरणों मे सबसे बेहतरीन आवरण अगस्त अंक का आवरण है। मुझे इस अंक का पाठकीय लिखते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है, जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। एक बेहतरीन व नव रचनाकारों एवं नित नए मूल्यों को गढ़ती पत्रिका के लिए अनमोल जी, प्रीति जी व पत्रिका से जुड़ी पूरी टीम तथा सभी रचनाकारों को ह्रदयतल से सहस्र बधाईयाँ।
नित नये आयाम छूती, नव सृजन हस्ताक्षर।
ये नव रचनाकार को, है बनाती साक्षर।।
– इशान अहमद