नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है: रश्मि प्रभा
समंदर का खारापन मीठा हो जाता है, जब उसके मध्य से सूर्य की प्रथम रश्मि सम्पूर्ण जलराशि पर बिखर जाती है, और लहरों के विभिन्न अर्थों को आत्मसात करके एक काया का रूप ले लेती है – रश्मि प्रभा ! जी हाँ, नाम से तो साहित्य के हर मुख्य बिंदु परिचित हैं, क्योंकि उनकी कलम लिखती नहीं, बोलती है।
जन्म, नाम परिचय, उपलब्धियां सूर्य की किरणें ही तो हैं …
उनकी कलम – ज़िन्दगी और मृत्यु के तार तार को स्वर देती है
परिचय उनके शब्दों में,
एक नाम से बढ़कर जीवन अनुभव होता है .
एक ही नाम तो कितनों के होते हैं
नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है
हवाओं का रूख जो बदले सार्थक परिणाम के लिए
असली परिचय वही होता है …
पर मांगते हैं सब सांसारिक परिचय
तो यह है एक छोटा सा परिचय मेरा आपके बीच – मैं हूँ रश्मि प्रभा
मेरी कलम ने परिचय का आदान-प्रदान किया तो भीड़ से एक आवाज़ आई जानी पहचानी – ‘मुझे आपके बारे में भी जानना है ….’ मेरे बारे में ? फिर कैनवस पर औरों को उकेरते हुए मैंने बार बार पलट कर खुद को देखा, कोई खासियत मिले तो कोई रंग दूँ …. जब भी देखा, उसकी आँखों में मुझे उड़ते बादल नज़र आए। कल रात मैंने कुछ बादल चुरा लिए, शायद उसके भीतर से परिचय का कोई सूत्र मिल जाए ! प्रसाद कुटी की सबसे छोटी बेटी ! रश्मि नाम, कवि सुमित्रानंदन पन्त ने दिया और इस रश्मि नाम से इसने पढ़ाई की और अब लिखने लगी है।
रश्मि प्रभा जी से बातचीत का यह दूसरा अवसर है , जिसे मैं किसी भी तरह खोना नहीं चाहती थी। उनके शब्द , ह्रदय के भीतर तक जाकर चुपके से सहला दिया करते हैं ! एक शीतल धार है , जिसके साथ होने का आनंद शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना संभव होता तो ये प्रयत्न अवश्य ही करती ! हाल ही मैं उनकी माँ , स्व. सरस्वती प्रसाद जी की पुस्तक ‘एक थी तरु’ का प्रकाशन व् विमोचन हुआ। उनसे ब्लॉग की दुनिया के बारे में भी विस्तृत चर्चा हुई। आइये, सीधे मुलाक़ात के उन अद्भुत पलों की ओर बढ़ते हैं –
प्रीति ‘अज्ञात’ – पिछली मुलाक़ात बेहद सार्थक रही थी , पर फिर भी कितना कुछ जानना, समझना शेष रह गया था। आज उसे ही समेटने की कोशिश करती हूँ !
रश्मि प्रभा – जी, प्रीति ! मुझे भी आपसे बातें करना सुखद लगता है। धन्यवाद , आपका !
प्रीति ‘अज्ञात’ – यूँ तो आप लेखन से बहुत पहले से ही जुडी रहीं हैं, पर इसमें सक्रियता लाने का श्रेय आप किसे देना चाहेंगीं ?
रश्मि प्रभा – मेरी पतवार को सार्थक बनाया मेरे तीन बच्चों ने (मृगांक, खुशबू, अपराजिता)। उन्होंने इतनी मजबूती से पतवार को थामा कि बिना पाल खोले भी हम आगे बढ़ गए। 2007 में खुशबू ने मेरे लिए ब्लॉग बनाया, जिसमें मदद मिली हिंदी ब्लॉगिंग के जाने माने चिट्ठाकार संजीव तिवारी से। हिंदी में कैसे शुरुआत हो, कैसे औरों से संपर्क हो यह उन्होंने ही बताया। मैं तो कंप्यूटर देखते ही डर जाती थी, पर खुशबू ने मुझे सब सिखाया और धीरे धीरे मैंने पंख फैलाये। आकाश में कई सशक्त पंछी पहले से थे, अपनी उड़ान के साथ उन सारे पंछियों ने आने वाले हर पंछियों का स्वागत किया। मैं सबकी शुक्रगुजार हूँ।
प्रीति ‘अज्ञात’ -.सामान्यत: रचनाकार अपने ही रचनाकर्म को पुस्तक में ढालने के लिए प्रयत्नशील रहता है. ऐसे में ‘एक थी तरु’ की परिकल्पना कैसे हुई ? माँ के लेखन को सँजोकर रखना और फिर उसे एक क़िताब की शक्ल दे देना…विमोचन के पल बेहद भावुक रहे होंगे!
रश्मि प्रभा – मेरा आरम्भ ही हुआ साझा संकलन ‘अनमोल संचयन’ से। उसमें अन्य रचनाकारों के साथ मेरी अम्मा की रचना भी थी। मेरा सपना कभी सिर्फ मेरा एकल संग्रह नहीं रहा। रही बात ‘एक थी तरु’ की, तो उसकी कल्पना-परिकल्पना वर्षों की थी। जब भी मैंने कदम उठाया, अम्मा ने कहा – बहुत पैसे लगेंगे और मैं नाराज़ हो जाती। क्योंकि इन रचनाओं के आगे तो तख्तोताज भी मेरे लिए मूल्यहीन हैं। खैर, अचानक उनका 19 सितम्बर 2013 को जाना और उसी माह के आखिर में मेरी सोच दृढ हो गई कि एक सपनों सी अम्मा को उनके सपनों में अपने सपने मिलाकर हम तर्पण अर्पण करें, जिसे 19 सितम्बर 2014 को मैंने किया, और शब्दों का अर्घ्य लिए उनका लगभग पूरा परिवार वहां मौजूद था। आभासी दुनिया से अपनत्व लिए कई चेहरे हमारे साथ खड़े थे। कैसा अनोखा पल था …. क्या कहूँ, बस उसे महसूस किया जा सकता है।
प्रीति ‘अज्ञात’ -.’एक थी तरु’ मानवीय संवेदनाओं और जीवन से जुड़े हर अहसास को अत्यंत सहजता और निश्छलता से बयां करती है, कहीं कोई दुराव-छुपाव या झिझक नहीं ! आपकी कविताएँ भी हृदयपटल पर इतनी ही गहरी छाप छोड़ती रही हैं, सरस्वती जी का आपके लेखन के बारे में क्या कहना था ?
रश्मि प्रभा – मेरे लेखन में मेरी अम्मा का अद्भुत स्पर्श है। वे हमेशा मेरा लिखा सुनती थीं, यदि भाई-बहन के पास होतीं तो फोन पर सुनाती। इधर आकर उन्होंने कहा था – “अरे,तुम तो मेरे ख्यालों को ही लिखने लगी हो ” और एक कॉपी में उसे संजोने लगी थीं। अब इससे अधिक मेरे लिए प्रोत्साहन के बोल क्या होंगे !
प्रीति ‘अज्ञात’ – कहते हैं, लेखन में बड़ी शक्ति होती है और क़िताब से ज्यादा सच्चा कोई मित्र नहीं! आपका अनुभव कैसा और कितना संघर्षपूर्ण रहा ?
रश्मि प्रभा – संघर्षों का सैलाब था, पर मैं बहकर भी नहीं बही – नाव, नाविक सब थे – अम्मा, मेरे बच्चे – मृगांक,खुशबू,अपराजिता। बस यही निष्कर्ष निकला कि संघर्ष न हो तो न अपने नीड़ को पहचान पाता है व्यक्ति, न कदम मजबूत होते हैं।
कलम मेरी शक्ति रही, भावनाएं मेरा आधार, पर इससे परे भी मैंने बहुत कुछ किया। छोटे से स्कूल में पढ़ाया, टयूशन पढ़ाने गई, प्राइवेट बैंक में काम किया, हर्बल उबटन बनाया, लेकिन मेरा सुकून मेरा ब्लॉग बना। अपने होने का एहसास होता है, कोई मुझे पढ़ता है – इसकी ख़ुशी होती है। फिर मैं हिन्दयुग्म से जुड़ी। ‘ऑनलाइन कवि सम्मलेन’ ‘गीतों भरी कहानी’ ने मुझे एक अलग पहचान दी। हिन्दयुग्म से ही मेरा काव्य-संग्रह ‘शब्दों का रिश्ता’ प्रकाशित हुआ और जनवरी 2010 के बुक फेयर में इमरोज़ के द्वारा उसका विमोचन हुआ और लोगों के बीच मेरी पहचान बढ़ने लगी। फिर रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पना से जुडी (2010 में), वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री के रूप में सम्मानित हुई। उसके बाद मैंने रवीन्द्र प्रभात जी के साथ ऑनलाइन ‘वटवृक्ष’ का संपादन शुरू किया । फिर 30 अप्रैल 2011 को त्रैमासिक पत्रिका के रूप में इसे हमने लोगों के मध्य रखा। मेरे संपादन में ‘अनमोल संचयन’ , ‘परिक्रमा’ का प्रकाशन हुआ। ये सारे कार्यकलाप खुद में रहने का उपक्रम है, अन्यथा -‘दुनिया चिड़िया का बसेरा है, ना तेरा है ना मेरा है’।
प्रीति ‘अज्ञात’ – आजकल बहुत सी साहित्यिक संस्थाएँ, साहित्य सेवा के नाम पर पुरस्कार और प्रोत्साहन देने की आड़ में ‘व्यापार’ पर उतर आई हैं, इस बारे में आपका क्या कहना है ?
रश्मि प्रभा -‘पुरस्कार’ एक प्रोत्साहन है, परन्तु कई संस्थाओं ने इसे चापलूसी भरा व्यापार ही बना लिया है ! जबकि साहित्य कोई व्यापार नहीं होता, इसका चयन आधार निष्पक्ष होना चाहिए।
प्रीति ‘अज्ञात’ – मेरा मानना है कि जब भी किसी संस्था के द्वारा किसी प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टि मंगाई जाती है तो वहाँ पारदर्शिता होना अत्यंत आवश्यक है ! अयोग्य या कुपात्र को आगे बढ़ाने से, साहित्य का विकास हो-न-हो पर ये कुंठा को जन्म अवश्य देता है. ऐसे में ‘सरस्विता-पुरस्कार’ वाक़ई बधाई का पात्र है, जिसमें विजेता घोषित किए जाने वाली प्रविष्टियों को सार्वजनिक कर संस्था ने अपनी ईमानदारी का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया. आप इस बारे में अपने अनुभव साझा करें !
रश्मि प्रभा – जी हाँ प्रीति, इस स्वप्न को भी मूर्त रूप देकर मैंने वर्तमान में उभरे श्रेष्ठ रचनाकारों में से तीन अलग विधाओं से एक-एक का चयन किया। पहली बार मैंने पुरस्कार के बाद उनकी रचना को प्रस्तुत भी किया, इस बार से मेरी योजना है कि जिनकी रचनाएँ बहुत अच्छी की श्रेणी में होंगी उन्हें पुस्तक का रूप दूँगी और इसके लिए मैंने प्रविष्टि शुल्क भी निर्धारित किया है, क्योंकि अकेले सबकुछ कर पाना संभव नहीं।
प्रीति ‘अज्ञात’ – वर्तमान में ‘सोशल नेटवर्किंग साइट्स’ और उसमें होने वाली सार्थक और निरर्थक बहस, आरोप-प्रत्यारोप और ज्वलंत मुद्दों को और भी ज्वलनशील बनाने की प्रक्रिया अपने चरम पर पहुँच चुकी है. ऐसे में निष्पक्ष और ईमानदार लेखन का टिक पाना, और अपनी संवेदनशीलता को सहेजे रखना दुष्कर हो चला है. क्या, इस तरह के लोग यहाँ टिक सकेंगे ?
रश्मि प्रभा – बिल्कुल टिके रहेंगे, – सबसे पहले आरोप-प्रत्यारोप के दलदल में स्नान करने की ज़रूरत ही क्या है स्पष्टीकरण देकर ? रचनाकार अपनी कलम का सम्मान करता रहे, कोई बाधा नहीं आएगी। सार्थक बहस हो या निरर्थक – उसे पढ़िए, मोती दिखें तो चुन लीजिये और आगे बढ़ जाइये।
प्रीति ‘अज्ञात’ – अत्यंत ही सार्थक एवं विचारणीय बात कही है , आपने ! आशा करती हूँ कि हमारे पाठकगण और रचनाकार मित्र , निराशा छोड़ अपने कर्मपथ पर निरंतर गतिमान रहेंगे !
रश्मि प्रभा – ऐसा ही होगा ! मुझे पूर्ण विश्वास है !
प्रीति ‘अज्ञात’ – कुछ ऐसे विषय जो घर की चारदीवारी तक ही सीमित रहते थे, उन पर आजकल खुलकर लिखा जा रहा है. जैसे रजस्वला स्त्री का दर्द, एक उम्र को पार करने के बाद की अधूरी इच्छाएँ ! यह समाज का विकसित रूप है या विकृत ?
रश्मि प्रभा – मेरी समझ इसे विकसित रूप नहीं मानती। पहले ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं होता था – बातें पहले भी थीं, पर हर शब्द,स्थिति को घृणित रूप से निर्वस्त्र करना एक दुखद स्थिति है। बच्चों की अबोध मानसिकता के आगे सबकुछ क्षत-विक्षत लाशों की ढेर की तरह है, वे क्या उठाएँगे, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी, सोचना मुश्किल है।
प्रीति ‘अज्ञात’ – जीवन का कोई पल, जो अभी भी स्मृतिपटल पर जस-का-तस अंकित है ? बीते हुए समय में से क्या बदलना चाहेंगीं ?
रश्मि प्रभा – आज भी वह दिन याद आता है, जब हम कवि सुमित्रानंदन पंत से मिले थे और उन्होंने मेरा नाम रखा था। मुझे उस दिन ये नाम अच्छा नहीं लगा था ! मेरे पिता स्व रामचन्द्र प्रसाद ने कहा था, “इसकी विशेषता बाद में जानोगी ” और आज इसकी विशेष गरिमा मेरे साथ है 🙂
बदलने के लिए ,बहुत कुछ है अम्मा और बच्चों से जुड़ा, जिन्हें शब्द देना मुमकिन नहीं, और शब्द देकर भी क्या !
प्रीति ‘अज्ञात’ – ब्लॉग की अपनी एक दुनिया है, जहाँ निश्चित रूप से गंभीर लेखन हो रहा है और पाठक भी वही हैं जो वाक़ई पढ़ना चाहते हैं ! इस दिशा में आप काफी प्रयत्नशील रही हैं और प्रेरणास्त्रोत भी ! आप इसका श्रेय किसे देंगीं ? ब्लॉगिंग की दुनिया की एक झलक भी हमारे पाठकों को अवश्य दिखाएँ !
रश्मि प्रभा – मेरा लेखन से सम्बन्ध मेरे परिवार की अमूल्य विरासत है, जिसकी कलम मेरे पिता स्व रामचन्द्र प्रसाद ने खरीदी, मेरी अम्मा स्व सरस्वती प्रसाद ने पन्नों को मुखर बनाया । मैं उनसे निर्मित वह पौधा हूँ, जिसे मेरी अम्मा ने सींचा,काट-छाँट की, कवि पंत ने मुझे नाम दिया। मेरे पिता ने कहा, “बेटी, अपने नाम के अनुरूप बनना” … मैं नहीं जानती कि मैंने इस नाम को कितनी सार्थकता दी, पर मेरा प्रयास, मेरा लक्ष्य इस विरासत को पूर्णता देना है . कविता है कवि की आहट उसके जिंदा रहने की सुगबुगाहट, उसके सपने,उसके आँसू, उसकी उम्मीदें, उसके जीने के शाब्दिक मायने !
इसके अतिरिक्त नाम लिखने लगूँ ……. फिर शब्द भावों के लिए कुछ शेष नहीं रह जायेगा ! तो एक आलेख उन ब्लॉगर्स के नाम ही सही ….
एक काव्य के रूप में मुझे सबसे पहले मिलीं – रंजना भाटिया , ‘कुछ मेरी कलम से’, वे मुझे अपनी पंक्तियों सी लगीं – ” जीवन खुद ही एक गीत है, गज़ल है, नज़्म है. बस उसको रूह से महसूस करने की ज़रूरत है. उसके हर पहलू को नये ढंग से छू लेने की ज़रूरत है.” मैंने इनको पढ़ना – समझना कभी नहीं छोड़ा , क्योंकि न मैं झील से दूर हो सकती हूँ , न लम्हों से , न पंखों की उड़ान से ,न शब्दों से होनेवाली प्राण प्रतिष्ठा से !
फिर मैंने पढ़ा समीर लाल जी को यानि आकाश पर गई नज़र – ओह ! उड़न तश्तरी ….
क्या नहीं मिला इनकी लेखनी में – हर शैली , हर अंदाज – सबकुछ ख़ास पर खुद सरल, बिल्कुल प्राकृतिक ! इनकी सलाह पर अमल कीजिये तो लाभ ही लाभ है , नुकसान कत्तई नहीं –
“टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ… फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.”
“वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं, सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं, मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं, ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं, मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं , विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं …. ” अपने इन एहसासों की गरिमा के साथ मुझे मिलीं शोभना चौरे अपनी अभिव्यक्ति के साथ .
मुलाकातों के मध्य शब्दों के अरण्य में , जिसे लोग ब्लॉग कहते हैं फख्र से – उसमें मैं एक अनजान चिड़िया सी आई . ओह ! कितने प्यारे प्यारे घोंसले हैं यहाँ , मैं कैसा बनाऊं – चिंता थी भारी …
तब मेरी बिटिया यानि नन्हीं गौरैया खुशबू ने कहा – इसमें क्या है भारी ? और एक डाली पर तिनकों से निर्माण कार्य शुरू किया …. शब्द भाव मेरे, चोंच सी कलम उसकी , पर रोमन दाने मिले -उसी में मैं खुश कि बया की तरह संजीव तिवारी जी मिले और हिंदी में लिखने का आरंभ हुआ . कई लोगों के मध्य मेरी पहचान यानि मेरे नीड़ ( ब्लॉग ) की पहचान इन्होंने दी
हिंदी के साथ मैं अपने घोंसले में उतरी 28 अक्तूबर 2007 को रचना अद्भुत शिक्षा ! के साथ , जिसके पहले टिप्पणीकार हुए मुकेश कुमार सिन्हा , मेरे छोटे भाई ! सोच की अदभुत ताकत ने उनके हाथों में कलम दी ताकि आसान हो जाएँ ‘जिंदगी की राहें’
” जो कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है………”
मैंने 2007 में ही जाना अर्बुडा को , जो कहती हैं मेरे हैं सिर्फ पंख… और सामने खुला आकाश…
किताबों की दुनिया में व्याख्या, समीक्षा के साथ मिले नीरज गोस्वामी
कुछ नाम ब्लॉग से परे आत्मीय होते गए – अच्छा लगा मुझे रश्मि जी से निकलकर कुछ संबोधनों से जुड़ना – किसी ने माँ कहा , किसी ने मासी , आंटी ……… जो संबोधन मेरे दिल के बेहद करीब आया , वह है – दीदी . कहने को कई लोगों ने दीदी पुकारा , लिखा …. पर कुछ की पुकार में संस्कार मिले और स्वतः मेरे भीतर से अपनत्व का आशीष निकला . भावनाओं को गंगा की तरह पाने के लिए पुकार का आह्वान संस्कारजनित होता है . नाम तो मिलने के क्रम में आते जायेंगे , पर ऐसे नहीं बताऊंगी – अच्छी , गहरी बातों को नज़र लगते देर नहीं लगती .
2007 से 2009 की यात्रा में मैंने इन ब्लोगरों को जाना , उनको पढ़ा –
अमिताभ मीत कबाड़खाना
महेन्द्र मिश्र समयचक्र जिन्होंने कहा है
31.7.12 को
अच्छा तो हम चलते हैं ,,,
अच्छा तो हम चलते हैं …
फिर कब मिलोगे …. ?
अब कभी नहीं …
आज से बंद ….
परमजीत सिहँ बाली दिशाएं
प्रीति महेता Antrang – The InnerSoul !
किशोर कुमार खोरेन्द्र barakha -gyanii
महक की महक जो कहती है –
समंदर किनारे बैठकर
सूरज की किरणो से
कुछ ख्वाब बुने थे परदेसी
आज शाम रंगीन आसमां के नीचे
जब रेत हाथों में ली
.लहेरें उन्हे आकर बहा ले गयी
अचरज में है मन तब से
क्या तुम तक
पहुँच पाएंगे वो……..” नहीं पहुँचती एक आभासी परिवार सा आभासी ब्लॉग की दुनिया कैसे बनती ! आश्चर्य होगा कि परिवार को कैसे आभासी कह सकते हैं … सोच के देखिये . परिवार , समाज, ब्लॉग …. सब एक ही सिक्के के पहलू हैं – मन चंगा तो कठौती में गंगा – क्यूँ ?
बालकिशन बालकिशन का ब्लॉग
जिन्होंने 2010 में कहा था –
अदालतों के दरवाजे पर हथौड़ा चलाते हुए
हड्डियों के बुखार से लोहा गलाते हुए
मौसम को अपने कांख में दबाये हुए
गले की फ़सान में अकुलाये हुए
आयेंगे और रह जायेंगे, छाएंगे
और वापस नहीं जायेंगे….
अनीता कुमार- ‘कुछ हम कहें’
एहसास नाम लिए !! एहसासों का सागर !!
अमिय प्रसून मल्लिक – ‘निहारिका- मेरा असीम संभाव्य…’
कंचन सिंह चौहान – ‘हृदय गवाक्ष’
मासूम शायर यानि अनिल जी शायर परिवार – ‘शायरों की जान॰॰॰’
किसी को नहीं भूली …………. खाली क्षणों में जो साथ रहे उनको भी पढ़ा , जो कुछ समय तक आकर नहीं आए उन्हें भी कभी पढ़ती हूँ …. जो मुझे नहीं जानते मैं उनको भी ढूंढकर पढ़ती हूँ , क्योंकि अच्छे लेखन में संजीवनी शक्ति होती है !
प्रीति ‘अज्ञात’ – नई पीढ़ी में और फ़ेसबुक की दुनिया से जुड़े लोगों में से किसमें आप संभावनाएँ देखती हैं. तुरंत परिणाम में विश्वास रखने वाली ‘युवा-पीढ़ी’ के लिए कोई सलाह / संदेश !
रश्मि प्रभा – आज के दौर में वाणी शर्मा , निर्मला कपिला ,संगीता स्वरुप , वंदना गुप्ता , शिखा वार्ष्णेय , रश्मि रविजा , साधना वैद , दीपिका रानी , अनुपमा त्रिपाठी , ऋता शेखर मधु , गुंजन अग्रवाल, अनुपमा पाठक , जेन्नी शबनम , दिव्या शुक्ला ,सदा , अंजू चौधरी, अंजू अनन्या, पल्लवी सक्सेना , डॉ गायत्री गुप्ता गुंजन , अनु, पूजा उपध्याय , प्रतिभा सक्सेना , प्रतिभा कटियार , गुंजन अग्रवाल, विभा रानी श्रीवास्तव , डॉ निधि टंडन , डॉ मोनिका शर्मा , हरकीरत हीर , अनीता निहलानी , सरस दरबारी, रेखा श्रीवास्तव , अमृता तन्मय, डॉ संध्या तिवारी, कविता रावत , संध्या शर्मा , प्रियंका राठौड़ , नीलिमा शर्मा , नीलू नीलम , गुंजन श्रीवास्तव , सुनीता शानू , साधना सिंह , सुशीला शिवरण , माहेश्वरी कनेरी , गीता पंडित , असीमा भट्ट , मीनाक्षी धन्वन्तरी, सुधा धींगडा , संगीता पूरी, मीनाक्षी पन्त , निवेदिता श्रीवास्तव , राजेश कुमारी , सुधा भार्गव , डॉ निशा महाराणा , अपर्णा मनोज , वंदना अवस्थी, इस्मत जैदी, बाबुशा कोहली , सुशीला पूरी, सुषमा वर्मा , दीप्ति शर्मा , सोनल रस्तोगी, शैफाली गुप्ता , कविता विकास, कनुप्रिया, रागिनी, तुलिका शर्मा, वंदना शुक्ला , रचना , सुमन, पल्लवी त्रिवेदी ,सौम्य , माधुरी शर्मा गुलेरी , रीना मौर्या ,रचना, रचना दीक्षित , मृदुला प्रधान , अर्चना चाव जी …….. अब अपील है कि जिनके नाम रह गए वे मुझसे कहें –
हिम्मत कैसे हुई मुझे भूलने की ???
अब पुरुष ब्लॉगर —-
सलिल वर्मा , महेंद्र श्रीवास्तव , राजेश उत्साही , शिवम् मिश्रा , अजय झा , मनोज कुमार, देव कुमार झा , पाबला जी , अरुण साथी , मधुरेश , प्रवीण पाण्डेय , सतीश सक्सेना ( जिनकी चेतावनी ने मुझे मायूस किया , फिर हम खूब हँसे ) , रवीन्द्र प्रभात , सुशील, संतोष त्रिवेदी, अतुल श्रीवास्तव , वाणभट , ओंकार , धीरेन्द्र जी, काजल कुमार, मार्कंडेय राय , एम् वर्मा , शाहिद मिर्ज़ा , शैलेश भारतवासी , अरुण चन्द्र राय , नरेन्द्र व्यास, पंकज त्रिवेदी, राजीव चतुर्वेदी, इमरान अंसारी, महफूज़, अलोक खरे , आशुतोष मिश्रा, मुकेश तिवारी, राजेंद्र तेला , कैलाश शर्मा , ज्योति खरे , अनिल कान्त, नित्यानंद गायन , संतोष कुमार, हेमंत कुमार दुबे, आनंद द्विवेदी , रूपचंद शास्त्री मयंक , हंसराज सुज्ञ , दिगम्बर नासवा , गिरिजेश राव , अनुराग आर्य, सागर शेख, अपूर्व ,राज भाटिया , अमित कुमार श्रीवास्तव , जीतेन्द्र जौहर , सतीश पंचम , कुश्वंश, अशोक सलूजा ,अरुण कुमार निगम , श्याम कोरी उदय , नीलांश, रमाकांत सिंह, डॉ टी एस दराल , शिवनाथ कुमार , एस एम् हबीब , देवेन्द्र पाण्डेय , अमरेन्द्र शुक्ल, राजेंद्र अवस्थी , पी सी गोदियाल, विमलेन्दु जी , डॉ जाकिर अली रजनीश , अनवर जमाल , ……………….. कई नाम हैं ख़ास कलम के , पर अभी ब्रह्मांड की सैर में हैं …. खैर !
दो नाम विशेष रूप से लूँगी – क्योंकि वे देश से जुड़े हैं
गौतम राजरिशी
पाल ले इक रोग नादां…
कुश शर्मा का
“सच में!” …………….. इनकी कलम ही नहीं , इनकी वर्दी भी मेरा आकर्षण है …
वर्तमान में जो नाम विशेष हैं, वे हैं – आदित्य चौधरी, आशा चौधरी,ऋता शेखर मधु, अजय आनंद,अपर्णा अनेकवर्णा, मीनाक्षी, प्रीति ‘अज्ञात’, सुरेन्द्र जैन, किशोर कुमार, ज्योति खरे, …। बहुत लोग हैं 🙂
और अभी जीना है
लिखना है पढ़ना है
नाम और जुड़ेंगे
शब्दों के रिश्ते और जुड़ेंगे ….
युवा पीढ़ी से बस इतना कहना है कि सबसे पहले खुद पर भरोसा रखो, आलोचना सुनो, करने से बचो सम्भावनाएँ ही सम्भावनाएँ हैं, उनको पूरी तरह देखना भला कब संभव हुआ है !!
प्रीति ‘अज्ञात’ -आपकी आगामी योजनाओं पर प्रकाश डालें।
रश्मि प्रभा – मेरा एक नया संग्रह आप सबके बीच आने को अपनी साज-सज्जा में लगा है – “मैं से परे मैं के साथ”, जिसकी भूमिका भारतकोश के हस्ताक्षर श्री आदित्य चौधरी ने लिखा है। इसके बाद, अम्मा को तर्पण अर्पण देने के लिए उनका छोटा सा उपन्यास कह लीजिये; आपके बीच होगा, “सात समंदर पार” और उसके विमोचन के साथ सरस्विता पुरस्कार।
प्रीति ‘अज्ञात’ – ‘हस्ताक्षर’ परिवार को समय देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !
रश्मि प्रभा – आपका भी धन्यवाद, प्रीति ! आपकी पत्रिका एक सुदृढ़ रास्ते पर है, मेरी तो बस अनंत शुभकामनायें हैं ! आप सभी दिनोंदिन प्रगतिपथ पर अग्रसर होते रहें !
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औपचारिक परिचय –
रश्मि प्रभा
जन्म – 13 फ़रवरी, 1958
जन्म भूमि – सीतामढ़ी, बिहार
अभिभावक – श्री रामचंद्र प्रसाद और श्रीमती सरस्वती प्रसाद
भाषा – हिंदी, अंग्रेज़ी
शिक्षा – स्नातक (इतिहास प्रतिष्ठा)
नागरिकता भारतीय
कर्म-क्षेत्र – कवयित्री
मुख्य रचनायें – शब्दों का रिश्ता (2010), अनुत्तरित (2011), अनमोल संचयन (2010), अनुगूँज (2011) आदि
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कृतियाँ –
काव्य-संग्रह :
शब्दों का रिश्ता (2010)
अनुत्तरित (2011)
महाभिनिष्क्रमण से निर्वाण तक (2012)
खुद की तलाश (2012)
चैतन्य (2013)
मेरा आत्मचिंतन (2012)
एक पल (2012)
संपादन :
अनमोल संचयन (2010)
अनुगूँज (2011)
परिक्रमा (2011)
एक साँस मेरी (2012)
खामोश, खामोशी और हम (2012)
बालार्क (2013)
एक थी तरु (2014)
वटवृक्ष (साहित्यिक त्रैमासिक एवं दैनिक वेब पत्रिका)-2011 से 2012
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सम्मान और पुरस्कार :
परिकल्पना ब्लॉगोत्सव द्वारा वर्ष 2010 की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान।
पत्रिका ‘द संडे इंडियन’ द्वारा तैयार हिंदी की 111 लेखिकाओं की सूची में नाम शामिल।
परिकल्पना ब्लॉगर दशक सम्मान – 2003-2012
शमशेर जन्मशती काव्य-सम्मान – 2011
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता 2013 भौगोलिक क्षेत्र 5 भारत – प्रथम स्थान प्राप्त
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– प्रीति अज्ञात