नया वर्ष…नई उम्मीदें
मनुष्य की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि नवीनता उसे सदैव ही ऊर्जा एवं उल्लास से भरती आई है। पौधे में खिलती नई कली को देख उसका मन प्रसन्न हो उठता है। पतझड़ के बाद आयी नयी कोंपलें उसमें जीवन रस का संचार कर देती हैं। घर की मुँडेर पर चहकते नए पक्षी को देख वह प्रफुल्लित हो उठता है। छोटा बच्चा, नए खिलौने को देख खिलखिलाने लगता है। नई मित्रता की धमक हृदय को आह्लादित किये रहती है। नए रिश्तों का अहसास गुलाबी रंगत लिए होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि नयेपन का स्वागत पूरे दिल और जोश के साथ किया जाता है। नयेपन का यह रिश्ता उम्मीद से भी जुड़ा है। तभी तो बीता हुआ कल, आने वाले कल की पीठ थपथपा; उसकी आँखों में मुट्ठी भर नवीन स्वप्न उड़ेल देता है, जिन्हें पूरा करने के लिए वर्तमान पीढ़ी, इस नई पीढ़ी की ओर आशा भरी नज़रों से देखती है। नई भाषा, नए मुहावरे गढ़ती है और एक नई परम्परा का जन्म होता है। नवीन एवं आधुनिक तकनीकी ज्ञान ने विकास की नयी राहें प्रशस्त की हैं।
नयापन आगे बढ़ने और सतत चलने की प्रेरणा भी देता है। दिन के समाप्त हो जाने पर हम नयी सुबह की प्रतीक्षा करते हैं और फिर यह क्रम नए सप्ताह और नए माह के साथ भी यूँ ही चलता रहता है। अनायास ही हम स्वयं को नए वर्ष की देहरी पर देख ठिठक जाते हैं। यही वो समय है, जो हमें आत्मावलोकन का अवसर देता है। बीते वर्ष में हमने ‘क्या खोया, क्या पाया’ का आधा-अधूरा हिसाब लगा; नए वर्ष की ओर बढ़ जाना होता है। यूँ नया कुछ होता नहीं पर कैलेंडर के गणित में उलझे रहने की ये प्रक्रिया हमें अनुशासित और जीवन को संतुलित रखती है। इसीलिए ही हम हर नयेपन को उत्सव की तरह मनाते हैं। त्योहारों में नए वस्त्र धारण करना, तरह-तरह की मिठाइयों का बनना, उनका सेवन इत्यादि हमारे जीवन को रुचिकर बनाते हैं। उसमें रस भरते हैं। घर में नई वस्तुओं का आना भी आनंददायी होता है। नयापन, परिवर्तन को इंगित करता है और परिवर्तन प्राय: उबाऊ और नीरस दिनचर्या के बीच किसी उत्प्रेरक का कार्य करता है। इसीलिए समय-समय पर मिलने वाली छुट्टियाँ भी मनुष्य को रीचार्ज करने में सहायक सिद्ध होती हैं और वह पुन: पूरी निष्ठा एवं लगन के साथ काम पर प्रसन्नतापूर्वक लौट आता है।
नववर्ष; उससे जुड़े संकल्पों और उनके चकनाचूर होकर टूट जाने से हम सब भली भाँति परिचित हैं। हाँ, यह बात अलग है कि जिस उत्साह से हम अपने संकल्पों की घोषणा करते हैं, उसी उत्साह से उनका अपडेट कभी नहीं देते। इसलिए नहीं कि हम भूल जाते हैं बल्कि इसलिए कि वो बताने लायक ही नहीं होता! सभी चाहते हैं कि नए साल में सबकुछ अच्छा हो, सुखद हो और ख़ुशहाल जीवन रहे। इसीलिए प्राय: वर्ष के प्रथम दिन सभी सामान्य से थोड़ा बेहतर व्यवहार करते हैं। संभवत: इसके पीछे यही सोच रहती होगी कि वर्ष का पहला दिन अच्छा जाए तो सब कुछ बढ़िया ही होता रहेगा। बहरहाल कारण जो भी हो पर तिथियाँ बदलती हैं, इंसान तो वही रहता है। बस यह एक अवसर अवश्य बन जाता है कुछ सकारात्मक प्रारम्भ करने का।
हमें दो डिब्बे लेने चाहिए, एक ख़ुशी का दूसरा उदासी का। जिस दिन कोई ख़ुशी मिले या हमारे कारण किसी के चेहरे पर मुस्कान आये तो उसके ज़िक्र के साथ एक स्माइली ख़ुशी के डिब्बे में डाल देनी है। यदि कोई दुःख हुआ या हमने किसी को दुःख पहुँचाया तो उदास चेहरा और घटना लिखकर दूसरे डिब्बे में डाल देना है।
हर सप्ताह मुस्कानों और उदास चेहरों की गिनती होगी। जिसके कारण किसी के हृदय को आघात पहुँचा, कोशिश रहे कि आगामी दिनों में ऐसा कुछ न हो और जिससे किसी ने प्रसन्नता का अनुभव किया, उसमें और भी वृद्धि करने का पूरा प्रयास रहे।
यह एक ऐसा निश्चय है, जिसमें ख़ुशी के पलों की जीत तय है क्योंकि उदासियों के कारण समझ हम उसे स्वयं ही दूर कर सकते हैं। जो मुस्कानें उधार हैं….उनका हिसाब-किताब लगाना छोड़ देना चाहिए क्योंकि अपेक्षा ही सबसे ज़्यादा दुःख देती है।
स्वस्थ रहें और अच्छे कार्यों में इतना व्यस्त रहें कि साल के अंतिम दिन आपकी ख़ुशियों का डिब्बा छलकने लगे।
आप सभी को नववर्ष की अशेष शुभकामनाएँ!
– प्रीति अज्ञात