बाल-वाटिका
नन्ही परी
प्यारी-प्यारी नन्ही परी
निकली छाता लेकर
बूँदों ने भी छेड़ा संगीत
टप…टप…टप
छोटे-छोटे हाथों में
चूड़ियाँ हैं हरी-हरी
घूमें-झूमे, इतराये
खन…खन…खन
पैरों में है पैंजनिया
चलती मचल-मचल
हर कदम पे बोले
छम…छम….छम
थोड़ी नखरीली
है थोड़ी हठीली
धम्म से बैठ पानी पे
छप….छप…छप
देखा जब मम्मी ने
डाँटा थोड़ा ज़ोर से
करने लगी दुलारी
मम्म…मम्म…मम्म
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ओढ़ रजाई बादल आया
सूरज को भी आलस आया
ओढ़ रजाई बादल आया
अम्मा दौड़ी छत पर सीधे
फैले मिर्च मसाले समेटे
शीत हवा ने उसे डराया
ओढ़ रजाई बादल आया
बाबा बैठे कम्बल टाँग
चिलम भरी हुक्का गुड़गुड़ाया
सर्दी में सूझी अन्घाई
स्वाद भरे और हुक्म सुनाया
ओढ़ रज़ाई बादल आया
उड़ती ओढ़नी खूब सम्भाली
भौजाई ने भौंहे सिकौड़ी
कौन भरे अब नीर शीत में
बिजली ने भी खूब डराया
ओढ़ रजाई बादल आया
बरसन लगा मेघ भी भैया
मिट्टी ने हँस-हँस सुगंध लुटाई
ले कटोरी मुनिया दौड़ी
ओला जब अंगना में धाया
ओढ़ रज़ाई बादल आया
सुन ले जिज्जी बात ध्यान से
पड़ जायेगा बीमार ये धनुआ
डर सर्दी का इसे न कोई
ले कागज की नाव जो आया
ओढ़ रजाई बादल आया
– सविता वर्मा ग़ज़ल