छन्द-संसार
दोहे-
राह कँटीली तो सफ़र, जल्दी होगा पार।
बढ़ जाती है पाँव की, काँटों पर रफ़्तार।।
पैसा ही अब हो गया, दुनिया में माँ-बाप।
सम्बन्धों में दूरियाँ, करता यही मिलाप।।
आप किसी पर कीजिए, इस हद तक विश्वास।
धोखा दे वो आपको, तो ख़ुद रहे उदास।।
लोगों के है प्यार में, वैसा ही अब खोट।
असली नोटों में छुपे, जैसे नकली नोट।।
चुरा रहा इंसान का, शाम-रात-दिन-भोर।
मोबाइल इस दौर का, सबसे शातिर चोर।।
आँखों में आँसू हँसे, होठों पर मुस्कान।
नाम इसी का दोस्तों, शायद कन्यादान।।
पहले होती थी कहाँ, तीन दिनी बारात।
अब तो शादी ब्याह है, कुछ घंटों की बात।।
आँगन, वृक्ष, चबूतरा, ख़त्म हुए दालान।
बड़े घरों की हो गए, अब कुत्ते पहचान।।
हुए एक से एक हैं, राजा और नवाब।
जीवन में किसके हुए, सभी मुकम्मल ख़्वाब।।
जीवन होना चाहिए, कुछ ज़ाहिर कुछ गुप्त।
सबकुछ ज़ाहिर हो गया, तो होगा सब लुप्त।।
कहाँ लिखा है चीख़िए, करिए शोर फ़िज़ूल।
गूँगों की करता नहीं, क्या वो दुआ क़ुबूल।।
इस जीवन में आम है, बाधा-ठोकर मोच।
पाना है इन पर विजय, तो रख आला सोच।।
रिश्ते भ्रम से टूटते, और भूल से काँच।
आदत में अच्छी नहीं, ये दोनों ही आँच।।
कुछ तो केवल इसलिए, करते दुआ-सलाम।
जाने किससे कौनसा, पड़ जाए कब काम।।
– डॉ. हरि फैज़ाबादी