छन्द संसार
दोहे
जब से मानस-पटल पर, बना तुम्हारा चित्र।
तब से मेरी आँख के, आँसू हुए पवित्र।।
सपना टूटा आँख में, बिखर गया आकाश।
मुस्कानों के गाँव में, मिली अश्रु की लाश।।
सपना टूटा आँख में, उठी हृदय में पीर।
लावारिस आँसू मिले, प्रणय-सिन्धु के तीर।।
मन बैरागी हो गया, सपने हुए फ़कीर।
प्रणय-सिन्धु-तट पर खड़ा, ठोंक रहा तक़दीर।।
जब से उनको हो गया, मुझसे पूर्ण विराग।
आँखों में सागर घिरा, हृदय आग ही आग।।
भाग्य-भाग्य का खेल है, जो विधि लिखा लिलार।
उनको मुस्कानें मिली, मुझे अश्रु की धार।।
जीवन भर छलती रही, आशा नमकहराम।
दृग के अश्कों ने किया, डगर- डगर बदनाम।।
आशा, आँसू, आस्था, सपने औ’ विश्वास।
सबके सब करने लगे, अब मेरा उपहास।।
रूपसि! अब तो बोल दो, प्रीत भरे दो बोल।
खण्ड-खण्ड होने लगा, मानस का भूगोल।।
जब तुमको डसने लगें, विपदाओं के ब्याल।
तब आ जाना प्राणधन! छोड़ जगत-जंजाल।।
फूलों-सी मुस्कान को, करिए यों न मलीन।
मुझ जैसे मिल जाएँगे, कौड़ी भर में तीन।।
मेरे मन की राधिके! मत कर यों बेचैन।
अन्तर की आशा गई, गया हृदय का चैन।।
सारे सपने हो गए, बे-मतलब नीलाम।
बे-दर्दी बाजार में, मिली न एक छदाम ।।
तृष्णा, भाषा, भावना, अश्रु, पीर औ’ प्यास।
फिर से दोहराने लगे, पीड़ा का इतिहास।।
दुनिया भर में भटकते, प्रेम-पिआसे नैन।
कर्णकुहर हैं तरसते, सुनने को प्रिय- बैन।।
– चेतन दुबे अनिल