छंद-संसार
दोहे
होनी अनहोनी सदा, देती पूर्वाभास।
समझ गये तो जीत है, ना समझे तो ह्रास।।
सोच समझ करते नहीं, जो भी अपना काम।
जीवन में उनको नहीं, मिलता है आराम।।
मुख पर ऐसे भाव हों, दिल में हों जज़्बात।
रुक कर सब देखे पढ़े, दिन हो चाहे रात।।
मौन प्रिये समझे नहीं, बनते हैं नादान।
शब्द बयां कैसे करूँ, दीवारों के कान।।
राहें छोड़ी सत्य की, छोड़ दिया परमार्थ।
करे न मानव देखिये, कलयुग में पुरुषार्थ।।
आँखों पर पट्टी बँधी, बुद्धि न देती साथ।
तिल तिल मानवता मरे, मानव हुआ अनाथ।।
लालच की गठरी रहीं, जिस मानव के पास।
पल में वो हँसता रहा, पल में हुआ उदास।।
आँखें मूंदे सब यहाँ, निभा रहे हैं रीत।
चुप रहकर होती नहीं, मानवता की जीत।।
पदवी पाकर ही हुआ ,इतना उसे गुमान।
अपनी ही औकात को, भूल गया इंसान।।
प्रेमभाव बिसरा रहे, आख़िर क्यों नादान।
छोटी छोटी बात पर , क्यों देते हैं जान।।
खाकसार है हम सभी, मानव या सामान।
फिर भी हम सब कर रहे, आख़िर क्यों अभिमान।।
मंदिर है ये ज्ञान का, स्वागत है श्रीमान।
बाहर रखकर आइये, सब अपने अभिमान।।
नारी तू नारायणी, करते सभी प्रणाम।
बिकती तेरी आबरू, क्यूं होते ही शाम।।
दिल को दिल से जोड़ता, होता नाजुक प्यार।
लाख घात कोई करे, पड़ती नहीं दरार।।
– सोनिया वर्मा