छन्द संसार
दोहे
अधर-अधर पर चुप्पियाँ, नयन-नयन में नीर।
कलियुग में अवतार ले, कष्ट हरो रघुवीर।।
जिनके मन रावण नहीं, उनके मन श्रीराम।
राम बसे जिस भी जगह, वह है पावन धाम।।
ऊँच-नीच के भेद का, उर में नहीं निवास।
प्रभु खाएंगे बेर ये, शबरी को विश्वास।।
मानवता की सोचता, तजकर दोष तमाम।
मर्यादित है जो पुरुष, वही आज का राम।।
राम नाम के जाप से, मिटता हर संताप।
कलियुग में सबसे बड़ा, राम नाम का जाप।।
जल-थल में दिखते सदा, हर क्षण रहते पास।
मेरी आँखों में बसा, रघुवर का विश्वास।।
क्रूर समय गढ़ने लगा, कैसी कथा अनंत।
राम नाम के जाप बिन, दिन का होता अंत।।
उर में पीर अपार थी, तभी मिला आराम।
मरा-मरा का जाप जब, गूँजा बनकर राम।।
घर में रखने को अमन, वन-वन भटके राम।
हम मन्दिर हित लड़ रहे, लेकर उनका नाम।।
राम भक्ति में हूँ लगा, मुझको है विश्वास।
हनुमत-तुलसी-सा सदा, राम रखेंगे पास।।
– अमन चाँदपुरी