छन्द-संसार
दोहे
मैंने दोहे में रचा, ख़ुशियों का संसार।
बच्चों की किलकारियाँ, माँ-बाबा का प्यार।।
आए मँडराए तुरत, भागे डरकर काल।
वीर सदा ऊँचा रखें, भारत माँ का भाल।।
चंचल चपला ने किया, बादल से उद्घोष।
बोली; पानी ला रही, भर लो बंजर कोष।।
‘ट्रुथ’ की ईश्वर! क्यों चढ़ें, बोलो लंबी ‘रोप।’
‘डेली’ झूठे मढ़ रहे, हम पर सौ आरोप।।
जीवन में अब तक नहीं, हुआ सुखद एहसास।
बूढ़े काँधे बोलते, चल ले लें संन्यास।।
ख़ूनी लाली से लिपे, ‘सुबह’ सजीले हाथ।
संध्या बोली तू बता, क्यों दूँ तेरा साथ।।
मुझको तुम मिलना वहाँ, किया दोस्त को कॉल।
लौटाता है ज़िन्दगी, जो छोटा टी-स्टॉल।।
मुरझाया-सा पेड़ कह, होने लगा उदास।
बिना छाँव कोई नहीं, अब आएगा पास।।
हम चंगे थे गाँव में, बूढ़े वट के पास।
शहर हमें करवा रहे, जीने के अभ्यास।।
सृष्टि चक्र को आज तक, समझ सका है कौन।
मित्रों इक दिन हम सभी, हो जाएँगे मौन।।
– शिवम खेरवार