छंद-संसार
दोहे
माँ की ममता पर कभी, करना नहीं सवाल।
हर पल चिंता में रहे, कैसा होगा लाल।।
बेटी को क्यों मारते, समझ इसे मनहूस।
बेटी चंदा है करे, काली रातें पूस।।
नदी किनारे बैठ कर, देखूँ जल की धार।
काश मनुज सब कर सकें, इस जैसा व्यवहार।।
जिस काँधे पर बैठ कर, देखा है संसार।
औलादों ने कर दिया, वह कन्धा लाचार।।
इंसानी फितरत रचे, अलग-अलग किरदार।
क्षण भर में नफ़रत दिखे, क्षण में दिखता प्यार।।
कासा लेकर हाथ में, खड़ा रहे लाचार।
लोग उसे दुत्कारते, करते दुर-व्यवहार।।
अपने-अपने आप में, व्यस्त हुए जनमान।
पीर सिसकती ही रही, रोते रहे मकान।।
कल-कल-कल बहता चले, शीतल नदिया नीर।
दिखता है चंचल कभी, कभी दिखे गंभीर।।
उर्दू में जो इश्क है, हिंदी में है प्यार।
निर्मल-सी वह भावना, जोड़े दिल के तार।।
सबके दिल में हर्ष हो, अधरों पर मुस्कान।
हे मेरे ईश्वर! सदा, सुखी रहे इंसान।।
– शिवम खेरवार