छंद-संसार
दोहे
जीवन भर करते रहे, सुख की ख़ातिर काम।
साँसे पल में छल गयीं, मौत हुई बदनाम।।
माता के आँगन खिला, महका हरसिंगार।
विगत क्षणों की याद में, मन काँचा कचनार।।
सुख-सुविधा की दौड़ में, व्याकुल दिखते नैन।
मन में रहती लालसा, खोया दिल का चैन।।
कितने आभासी हुए, नाते-रिश्तेदार।
मिले सामने तब दिखा, बंद हृदय का द्वार।।
ख़ुद को वह कहते रहे, प्रिय अंतरंग मित्र।
समय के कैनवास पर, स्वार्थ भरा चलचित्र।।
सड़कों के दोनों तरफ, गंधों भरा चिराग।
गुलमोहर की छाँव में, फूल रहा अनुराग।।
मन के आगे जीत हैं, तन के पीछे हार।
उम्र निगोड़ी छल रही, जतन हुए बेकार।।
मंदिर में होने लगा, कैसा कारोबार।
श्रद्धा के दीपक तले, पंडो का दरबार।।
गॉँवों में होने लगे, शहरों से अनुबंध।
कंकरीट के देश में, जोगन हुई सुगंध।।
– शशि पुरवार