छन्द-संसार
दोहे
चौराहे का नीम भी, रहने लगा उदास।
मोबाइल पर कर रहे, बच्चे टाइम पास।।
अफ़वाहें शातिर बहुत, झूठ बहुत वाचाल।
लेकिन सच के सामने, गले न इनकी दाल।।
पटरी-पटरी ज़िन्दगी, पटरी-पटरी रेल।
बे-पटरी चलता नहीं, जग में कोई खेल।।
उगने-छिपने से भला, क्या है उसको काम।
घूमे है धरती मगर, सूरज पर इल्जाम।।
चाँद-सितारों से सजी, रात करे अभिमान।
अरी निगोड़ी मान तू, सूरज का अहसान।।
किस का किस से वास्ता, किस का किस से मेल।
समय-समय की बात है, समय रचे है खेल।।
उसकी ही ये धूप है, और उसी की छाँव।
रस्तों से कैसा गिला, गर झुलसे हैं पाँव।।
कुछ-कुछ कर सब जा रहा, कुछ तो करो ख़याल।
कुछ-कुछ से सब कुछ मिले, कुछ का यही कमाल।।
कुछ तो जीवन जी लिया, कुछ जीने की चाह।
जब तक तेरा साथ है, फिर किस की परवाह।।
कुछ तो तेरे पास है, कुछ है मेरे पास।
पर दोनों का मेल तो, ज्यों धरती-आकाश।।
– पवन शर्मा