छंद-संसार
दोहे
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।।
प्यास बुझानी है अगर, जा नदिया के पास।
ओस चाटने से भला, बुझती है क्या प्यास।।
बचपन की वो मस्तियाँ, बचपन के वो मित्र।
सबकुछ धूमिल यूँ हुआ, ज्यों कोई चलचित्र।।
गागर में सागर भरूँ, भरूँ सीप आकाश।
प्रभुवर ! ऐसा तू मुझे, दे मन में विश्वास।।
जहाँ उजाला चाहिए, वहाँ अँधेरा घोर।
सब्ज़ी मंडी की तरह, संसद में है शोर।।
गीत, ग़ज़ल, चौपाइयाँ, दोहा, मुक्तक पस्त।
फ़िल्मी धुन पर अब अमन, दुनिया होती मस्त।।
एक पुत्र ने माँ चुनी, एक पुत्र ने बाप।
माँ-बापू किसको चुने, मुझे बताएँ आप।।
हिन्दी-उर्दू धन्य है, पाकर ऐसे वीर।
तुलसी-सूर-कबीर हों, या हों ग़ालिब-मीर।।
प्रेम-विनय से जो मिले, वो समझें जागीर।
हक़ से कभी न माँगतें, कुछ भी संत फ़क़ीर।।
ज्यों ही फैली आपके, अधरों पर मुस्कान।
ये धरती लगने लगी, मुझको स्वर्ग समान।।
– अमन चाँदपुरी