छन्द-संसार
दोहे
प्रेम एक आभास है, अनुपम एक यथार्थ।
प्रभु की सच्ची भक्ति में, इसका है भावार्थ।।
प्रेम, त्याग, बलिदान हैं, दर्दों के उपहार।
नींव यही जग की मगर, इससे ही संसार।।
इक पूजा है प्रेम भी, जीवन का आधार।
कहते कवि-विद्वान सब, प्रेम ईश का द्वार।।
निज में निज की आत्मा, झाँके बिन इंसान।
कुछ भी कर ले, हो नहीं, सकता कभी महान।।
उलझाता है ‘मैं’ हमें, इससे रहिए दूर।
‘मैं’ में मिल सकता नहीं, कभी आत्मिक नूर।।
दुविधा मन में किसलिए, इसे सोचिए आप।
अंजाने में पाप का, मिलता क्यूँ संताप।।
भूख-महामारी बनी, ‘ज्योति’ देश की मित्र।
सत्तर वर्षों बाद भी, वही पुराना चित्र।।
शहरी ढँग ने इस कदर, बदला वहाँ विधान।
गाँवों में भी अब नहीं, सच्चा हिंदुस्तान।।
अपना हिन्दुस्तान भी, रखे ग़ज़ब का मान।
इसने ही जग को दिया, ‘ज्योति’ शून्य का ज्ञान।।
केवल डिग्री ही नहीं, प्रतिभा की पहचान।
बिन व्यावहारिक ज्ञान के, कैसा प्रतिभावान।।
– ज्योति जैन