छंद-संसार
दोहे (फागुन)
फागुन आया झूम के, रंग लगाओ लाल।
अंग महकते हैं तभी, जब जब लगे गुलाल।।1।।
रंग रँगोली है सजी, महके सबके अंग।
खिली-खिली लगती फिजा, उड़ता है जब रंग।।2।।
ऋतु बसंत सबसे कहे, करो वैर को दूर।
प्रेम हवाएँ बह रहीं, दिखता मुख पर नूर।।3।।
होली खेलें प्रेम से, प्रेम जगत आधार।।
नफरत छोड़ो दिल मिले, सुखी दिखे संसार।।4।।
मुखड़े सजे गुलाल से, साजन करे कमाल।
जान-बूझ कर छेड़ता, रंग लगाता गाल।।5।।
भर पिचकारी प्रेम की, प्रेम रंग में डूब।
स्वप्न सजीले सज रहे, रंग चढ़ेगा खूब।।6।।
जीवन में खुशियाँ मिले, आये जब मधुमास।
मुख पर बिखरेगी हँसी, करें हास-परिहास।।7।।
फूल खिले कचनार के, हर्षित जियरा होय।
आजा अब तो बालमा, आँखें मेरी रोय।।8।।
यमुना तट बंसी बजे, कृष्ण सजाए साज।
भोली सूरत राधिका, दरस दिखा दो आज।।9।।
अंतिम पल ये प्यार के, भूल न जाना साथ।
जीवनभर चलना सदा, ले हाथों में हाथ।।10।।
– डॉ. पूर्णिमा राय