छन्द-संसार
दोहा दशक
अपनी नेकी की रखें, ऐसी भी कुछ राह।
जिनका हो संसार में, केवल ख़ुदा गवाह।।
भूल-चूक ग़लती क्षमा, आपस में तकरार।
इन सब बातों के बिना, कैसा रिश्ता-प्यार।।
उसे गिराना है कठिन, छोड़ो ये अरमान।
जिसे ठोकरों से मिला, हो चलने का ज्ञान।।
सच में हैं संसार के, कठिनाई में प्राण।
सच का देना पड़ रहा, हमको आज प्रमाण।।
पता नहीं क्यों आजकल, जो जन जितने भ्रष्ट।
लोग उन्हीं की ओर हैं, और अधिक आकृष्ट।।
एक भूल पर भूलते, लोग सभी उपकार।
किस दिल से कोई करे, यहाँ किसी से प्यार।।
सोच-समझ कर ही करो, लोगों पर विश्वास।
कहते हैं विश्वास में, होता विष का वास।।
जिसे मिला संतोष धन, एवं स्वस्थ शरीर।
दुनिया में कोई नहीं, उससे बड़ा अमीर।।
जीवन की सबसे बड़ी, जायदाद है जान।
अर्थी के किस काम का, धन प्रसिद्धि सम्मान।।
मेरा होगा किस तरह, अलग सभी से नाम।
मैं भी औरों की तरह, अगर करूँगा काम।।
– डॉ. हरि फैज़ाबादी